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Solar Panel: बनारस में रेल पटरियों पर लगा देश का पहला सोलर पैनल सिस्टम, ट्रैक से ही होगा बिजली उत्पादन

ऊपर रेल, नीचे सौर ऊर्जा – बरेका का अनोखा प्रयोग

रेलवे डेस्क। भारतीय रेलवे नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन शमन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करते हुए अधिक हरित और सतत परिवहन प्रणाली की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। इसी क्रम में बनारस रेल इंजन कारखाना (बरेका) ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की है। बरेका ने देश का पहला हटाने योग्य सोलर पैनल सिस्टम सक्रिय रेलवे पटरियों के बीच स्थापित किया है।

बरेका के महाप्रबंधक नरेश पाल सिंह ने फीता काटकर रेल ट्रैक पर लगे इस सोलर पैनल का उद्घाटन किया। उन्होंने इस परियोजना को सफल बनाने में मुख्य विद्युत सर्विस इंजीनियर भारद्वाज चौधरी और उनकी टीम की सराहना की।

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भारत में अपनी तरह की पहली पहल

बरेका की कार्यशाला की लाइन संख्या 19 पर इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्वदेशी तकनीक से तैयार विशेष इंस्टॉलेशन प्रक्रिया का उपयोग किया गया। इसमें पटरियों के बीच सौर पैनल लगाए गए हैं। खास बात यह है कि ट्रेन यातायात पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और जरूरत पड़ने पर इन्हें आसानी से हटाया जा सकता है। यह परियोजना बरेका परिसर में पहले से स्थापित रूफटॉप सोलर पावर प्लांट्स के साथ मिलकर हरित ऊर्जा उत्पादन को और गति देगी।

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चुनौतियां और समाधान

इस स्थापना के दौरान कई तकनीकी चुनौतियों को पार किया गया।

  • कंपन से सुरक्षा: ट्रेन गुजरने पर कंपन कम करने के लिए रबर माउंटिंग पैड लगाए गए।
  • मजबूत फिक्सेशन: पैनलों को एपॉक्सी एडहेसिव से कंक्रीट स्लीपर पर चिपकाया गया।
  • सफाई और रखरखाव: आसान सफाई व्यवस्था उपलब्ध कराई गई।
  • तेजी से हटाने की सुविधा: पटरियों के रखरखाव के लिए पैनलों को 4 एस.एस. एलन बोल्ट से जल्दी हटाया जा सकता है।

तकनीकी मुख्य बिंदु

  • विवरणजानकारी
    ट्रैक लंबाई70 मीटर
    क्षमता15 किलोवाट पीक (KWp)
    पैनल संख्या28
    पावर डेंसिटी220 KWp/किमी
    ऊर्जा घनत्व880 यूनिट/किमी/दिन
    आकार (सोलर पैनल)2278×1133×30 मिमी
    वजन (प्रति पैनल)31.83 किग्रा
    मॉड्यूल दक्षता21.31%
    सेल प्रकार144 हाफ कट मोनो क्रिस्टलाइन PERC बाइफेसियल सेल्स
    जंक्शन बॉक्स सुरक्षाIP: 68
    अधिकतम सिस्टम वोल्टेज1500 V

भविष्य की संभावनाएं

भारतीय रेलवे के 1.2 लाख किमी लंबे ट्रैक नेटवर्क में यार्ड लाइनों का उपयोग कर इस तकनीक को व्यापक स्तर पर अपनाया जा सकता है। इससे भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता नहीं होगी और पटरियों के बीच की जगह का ही इस्तेमाल किया जा सकेगा। अनुमान है कि प्रति किमी सालाना 3.21 लाख यूनिट तक ऊर्जा का उत्पादन संभव है।

नेट ज़ीरो लक्ष्य की ओर

बरेका का यह नवाचार भारतीय रेलवे को नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य की दिशा में बड़ी उपलब्धि दिलाएगा। महाप्रबंधक नरेश पाल सिंह ने कहा, “यह परियोजना न केवल सौर ऊर्जा के उपयोग का नया आयाम है, बल्कि भविष्य में भारतीय रेलवे के लिए हरित ऊर्जा का सशक्त मॉडल बनेगी।”

News Desk

Publisher & Editor-in-Chief

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