
छपरा (डॉ. सुनिल प्रसाद)। सारण की ऐतिहासिक एवं पौराणिक भूमि राजनीतिक रूप से काफी समृद्ध रही है। प्रदेश को 6 मुख्यमंत्री देने वाले इस जिले की बिहार की राजनीति में कभी तूती बोलती थीं लेकिन बदलते राजनीतिक परिवेश में आज विरान है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व दरोगा प्रसाद राय बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले एक प्रसिद्ध राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे। जिनका जन्म 2 सितंबर 1922 को बिहार के सारण जिलांतर्गत दरियापुर प्रखंड के बजहिया जैसे एक छोटे से गांव में दुनिया राय के पुत्र के रूप में हुई थी।
हालांकि वह एक साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे, लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता और संघर्षशीलता ने उन्हें राजनीति के शिखर तक पहुंचाया था।दरोगा प्रसाद राय के परिवार में उनकी पत्नी पार्वती देवी और पांच पुत्र विधानचंद्र राय, डॉ चंद्रिका राय, अशोक राय, अनिल राय और सुनील राय है। राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से करने वाले दारोगा प्रसाद राय देश की आजादी के बाद पहली बार 1952 में कांग्रेस पार्टी से परसा विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए। उस समय से लगातार विधायक मनोनीत होते रहे। तब श्री राय ने सोशलिस्ट पार्टी के धरीक्षण राय को 6,502 वोट से हरा दिया।
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लगातार चुनाव में जीत दर्ज करते रहें
इसके बाद 1957, 1962, 1967, 1969, 1972 में बिहार के विधानसभा चुनाव में भी परसा सीट से दरोगा प्रसाद को जीत मिलती रही। यह सभी चुनाव उन्होंने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर ही लड़े। 1957 में दरोगा प्रसाद ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सुखदेव नारायण सिंह को 7,538 वोट से हराया। 1962 में पीएसपी के महेंद्र सिंह को दरोगा प्रसाद से 5,325 वोट से हार का सामना करना पड़ा। 1967 में दरोगा प्रसाद ने संघटा सोशलिस्ट पार्टी के वाई. प्रसाद 5,573 वोट से हराया। 1969 में कांग्रेस के दारोगा प्रसाद राय ने निर्दलीय निरंजन प्रसाद सिंह को 7,793 वोट से हराया। इसी चुनाव के बाद ही दारोगा प्रसाद राय बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1972 में कांग्रेस के दरोगा प्रसाद ने निर्दलीय रामा नंद प्रसाद यादव 23,633 वोट से हरा दिया था।
यह जीत दरोगा प्रसाद की अब तक की सबसे बड़ी जीत थी। बात 1969 की है, बिहार में किसी दल के सरकार न बना पाने की वजह से राज्य में 4 जुलाई 1969 को राष्ट्रपति शासन का एलान कर दिया गया। यह वह दौर था, जब कांग्रेस आंतरिक कलह से जूझ रही थी और इसके दो धड़े कांग्रेस-आर (इंदिरा गांधी गुट) और कांग्रेस-ओ (कामराज गुट) के बीच सत्ता का संघर्ष गहराता जा रहा था। कांग्रेस के दो धड़ों- कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर) में टूटने का असर बिहार में भी दिखा और यहां पार्टी के 50 विधायक के. कामराज के नेतृत्व वाली कांग्रेस (ओ) और 60 विधायक इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस (आर) का हिस्सा बने।
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अल्प कार्यकाल में बड़ा काम करके बिहार की राजनीति में खिंची थी लंबी लकीर
वर्ष 1967 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल मात्र 10 महीने का था। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने राज्य के विकास और प्रशासन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने पथ और भूमि पर्चा कानून लागू कर बिहार की जनता को हक़ दिलाने का महत्वपूर्ण कार्य किया।बिहार की राजधानी पटना को उत्तर बिहार से जोड़ने वाली अतिमहत्वपूर्ण महात्मा गांधी सेतू का अगस्त 1970 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों पुल का आधार शिला रखने में ग्रामीण एवं पथ निर्माण विभाग द्वारा स्वीकृति देने में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। हालांकि वह कई बार मंत्री भी रहे और उन्होंने बिहार के वित्तीय प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू किया था।
संघर्षों से परिपूर्ण रहा था दरोगा बाबू का जीवन, उनके राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे पुत्र
दरोगा प्रसाद राय ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालते हुए राज्य के विकास और प्रशासन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अब्दुल गफूर की सरकार में वित्त मंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दीं और राज्य के वित्तीय प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। वह एक सच्चे जनसेवक थे और उनका जीवन संघर्ष, मेहनत और जनता के प्रति समर्पण की मिसाल है। दारोगा प्रसाद राय की राजनीतिक विरासत को उनके पुत्र डॉ चंद्रिका राय आगे बढ़ाने का कार्य किये हैं। उनके पुत्र डॉ चंद्रिका राय ने राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके अधूरे सपनो को पूरा करने में कोई कसर नही छोड़ी है। आज भी राजनीति जीवन से पिता के आदर्शों पर चल विकास की योगदान में हमेशा प्रत्यनशील रहते है। दरोगा प्रसाद राय एक प्रसिद्ध राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रसिद्ध राजेन्द्र महाविद्यालय में ग्रहण की थीं शिक्षा
दारोगा प्रसाद राय की शिक्षा के प्रति जागरूकता ने पिता की गरीबी को रोड़ा बनने नही दिया। उन्होंने माता पिता से जिद्द कर शिक्षा ग्रहण के लिए गांव के समीप स्थित प्राथमिक शिक्षा डोगहा में दाखिला लेने के बाद मिडिल स्कूल की शिक्षा दरिहरा सरैया विद्यालय से पूरा किया था। उसके बाद मैट्रिक की शिक्षा के लिए उच्च विद्यालय परसा में नामांकन कराया। मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास करते ही इंटर की शिक्षा ग्रहण करने के लिए विश्व विख्यात राजेन्द्र कॉलेज छपरा में दाखिला लिया। वहीं स्नातक की शिक्षा के लिए भागलपुर विश्व विद्यालय से अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत के लिए पटना चले गए।
वहां से वकालत की डिग्री हासिल किया। कुछ समय शिक्षक के रूप में समाज को योगदान भी दिया था। उनकी शैक्षणिक योग्यता और बुद्धिमत्ता ने उन्हें एक सफल राजनेता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दरोगा प्रसाद राय ने कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद वकालत करना शुरू किया था। उनकी वकालत के दौरान उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के साथ जुड़ कर काम किया और उनकी समस्याओं को समझने का अवसर प्राप्त किया। इससे उन्हें राजनीति में आने और समाज की सेवा करने के लिए प्रेरित किया गया।
बदलती राजनीतिक परिवेश में अपनी बौद्धिक ताकत से विरोधियों को किया परास्त
बिहार में 16 फरवरी 1970 को राष्ट्रपति शासन तब हटा, जब कांग्रेस-रेक्विजिशनिस्ट यानी कांग्रेस (आर) के नेतृत्व में छह पार्टियों के गठबंधन ने राज्य में सरकार बनाई। इसका नेतृत्व पार्टी नेता दरोगा प्रसाद राय ने किया, जिनका सीएम पद का रास्ता कभी हरिहर सिंह ने रोका था। इस गठबंधन में पीएसपी, भाकपा, एचयूआई झारखंड, शोषित दल और भारतीय क्रांति दल शामिल थे। पिछली सरकारों की तरह ही इस सरकार को भी गठबंधन रास नहीं आया और 18 दिसंबर 1970 को बिहार विधानसभा में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को डीपी राय हरा नहीं पाए।
बताया जाता है कि दरोगा प्रसाद राय के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास होने की वजह एचयूआई झारखंड की नाराजगी भी थी और इसके पीछे वजह थी एक कंडक्टर के निलंबन की घटना। बताया जाता है कि बिहार राज पथ परिवहन के एक आदिवासी कंडक्टर को सेवा से निलंबित कर दिया गया था। जब यह कंडक्टर झारखंड की मुख्य पार्टी के नेता बागुन सुम्ब्रई के पास मदद के लिए पहुंचा, तो उन्होंने सीएम दरोगा प्रसाद से कंडक्टर का निलंबन वापस लेने के लिए कहा। हालांकि, सीएम राय ने जब एक हफ्ते तक प्रतिक्रिया नहीं दी, तो बागुन सुम्ब्रई ने समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया।
महज 10 महीने ही सरकार चला पाए
उनकी सरकार के खिलाफ में पड़े 164 वोट, जबकि पक्ष में आए 146 वोट। इस अविश्वास प्रस्ताव को कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व वाली एसएसपी, जनसंघ, पीएसपी के बागी गुट, जनता पार्टी, कांग्रेस (ओ), स्वतंत्र पार्टी और शोषित दल के बीपी मंडल धड़े ने समर्थन दिया। सत्तासीन गठबंधन में दो धड़ों के बागी हो जाने की वजह से ही दरोगा प्रसाद राय महज 10 महीने ही सरकार चला पाए। परसा से लगातार 6 बार चुनाव जीतने के बाद 1977 के बिहार विधानसभा चुनाव में दरोगा प्रसाद को हार का सामना करना पड़ा।
अप्रैल 1975 से अप्रैल 1977 का दौर बिहार के साथ-साथ पूरे देश के लिए कई बदलावों का दौर रहा। जेपी आंदोलन की लहर में दरोगा प्रसाद को भी हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में जनता पार्टी के रामानंद प्रसाद यादव ने कांग्रेस के दरोगा प्रसाद रॉय 12,780 वोट से हरा दिया था। 1977 में हार का सामना करने के बाद एक बार फिर से 1980 में दरोगा प्रसाद की परसा सीट पर वापसी हुई। इस चुनाव में दरोगा प्रसाद राय ने कांग्रेस (आई) के टिकट पर चुनाव लड़कर सीपीआई के राम नाथ सिंह को 41,292 वोट से हरा दिया।
उपचुनाव में दरोगा प्रसाद की पत्नी ने चुनाव जीत लिया
15 अप्रैल 1981 को दरोगा प्रसाद राय का निधन हो गया। उनके निधन के बाद परसा सीट खाली हो गई। इसके बाद सीट पर उपचुनाव कराए गए। उपचुनाव में दरोगा प्रसाद की पत्नी ने चुनाव जीत लिया। कांग्रेस (आई) से पार्वती देवी ने जनता पार्टी के बी.पी.सिंह को 15,563 वोट से हरा दिया था। 1985 में दरोगा प्रसाद के बेटे चंद्रिका राय ने परसा सीट से जीत दर्ज की। चंद्रिका प्रसाद ने परसा सीट से पहली बार चुनाव लड़कर अपने चुनावी करियर की शुरुआत की। चंद्रिका राय ने अपने पिता की जगह लेते हुए कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के चंद्रिका राय ने सीपीआई के राम नाथ विद्यार्थी को 11,574 वोट से हरा दिया। इसके बाद 1990, 1995, 2000, 2005 के चुनाव में लगातार चंद्रिका राय को जीत मिलती रही।
लेकिन इस दौरान वह अपनी पार्टी लगातार बदलते रहे। कांग्रेस से अलग होक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। चंद्रिका राय ने सीपीआई के राम नाथ विद्यार्थी को 26,835 वोट से हरा दिया। 1995 में चंद्रिका राय ने जनतादल के टिकट पर जीत हासिल की। इस चुनाव में उन्होंने समता पार्टी के राम नाथ विद्यार्थी को 14,588 वोट से हराया। 2000 में चंद्रिका राय ने राजद के टिकट पर जीत हासिल की। उन्होंने कांग्रेस के राम नाथ विद्यार्थी को 45,510 वोट से हराया। 2005 में बिहार में दो बार चुनाव हुए थे। पहली बार फरवरी और दूसरी बार अक्तूबर में यह चुनाव हुए थे। उनमें से पहला चुनाव तो चंद्रिका प्रसाद जीत गए थे लेकिन दूसरा चुनाव वह हार गए थे।
2005 में चंद्रिका राय राजद के टिकट पर जीते
फरवरी 2005 में चंद्रिका राय राजद के टिकट पर जीते। उन्होंने जदयू के छोटेलाल राय को 3072 वोट से हराया।2005 में जब दूसरी बार अक्तूबर में चुनाव हुए तो इस बार चंद्रिका राय को हार का सामना करना पड़ा। चंद्रिका राय को जदयू के छोटेलाल राय ने 10,373 वोट से हरा दिया। 2010 के चुनाव में भी चंद्रिका राय को हार का सामना करना पड़ा था। 2010 में भी जदयू के छोटेलाल राय को ही जीत मिली। इस चुनाव में जदयू के छोटेलाल राय ने राजद के चंद्रिका राय को 4,689 वोट से हराया। 2015 में चंद्रिका राय ने राजद के टिकट पर एक बार फिर चुनाव जीता। इस बार उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी से चुनाव लड़ रहे छोटेलाल राय को 42,335 वोट से हराया।
छह महीने बाद ही शादी में दरार
2018 में राजद से चंद्रिका राय का रिश्ता सिर्फ चुनावों का नहीं रहा बल्कि पारिवारिक हो गया। चंद्रिका राय की बेटी ऐश्वर्या राय की शादी लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव से हुई। इसके बाद दोनों परिवारों में संबंध और मजबूत होते दिखे। हालांकि छह महीने बाद ही शादी में दरार पड़ गई। इसके बाद दोनों अलग रहने लगे। तलाक की अर्जी को कोर्ट में दाखिल किया गया। जो अभी भी विचाराधीन है। इसके बाद फरवरी 2020 में चंद्रिका राय ने राजद से इस्तीफा दे दिया।अक्तूबर 2020 में बिहार में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में चंद्रिका राय ने जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ा।
राजद ने इस बार छोटेलाल राय को टिकट दिया। चुनाव के नतीजे आए तो चंद्रिका राय को हार का सामना करना पड़ा। राजद के छोटेलाल राय ने उन्हें 17,293 वोट से हरा दिया। 2025 विधानसभा चुनाव को लेकर इस क्षेत्र में भी उम्मीदवारी को लेकर विभिन्न दलों के बीच राजनीतिक हलचल तेज है। वर्तमान विधायक छोटेलाल राय जहाँ अपनी उम्मीदवारी को लेकर आस्वस्त हैं वही चंद्रिका राय की भतीजी डॉ करिश्मा राय भी राजद से अपनी उम्मीदवारी तय करने हेतु क्षेत्र में जुटी हैं।
जब एक बस कण्डक्टर की वजह से दारोगा राय को छोड़नी पड़ी थी मुख्यमंत्री की कुर्सी
अमूमन यह सुनने को मिलता है कि एक आम आदमी कुछ नहीं कर सकता, लेकिन कभी-कभी आम आदमी की आवाज, सत्ता के सिंहासन तक को हिला देती है।ऐसा हुआ भी। यह घटना बिहार की 1970 के दौर की है।जब दरोगा प्रसाद राय बिहार के मुख्यमंत्री थे।उनके कार्यकाल के दौरान एक मामूली सी घटना हुई, जो एक बस कंडक्टर से जुड़ी है। एक सरकारी बस कंडक्टर को निलंबित कर दिया गया। पर यही घटना इतनी बड़ी बन गई कि दरोगा बाबू को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी। ‘सिंपल सी’ गलती, जिसकी कीमत पूरी सरकार को चुकानी पड़ी।जानिए, उस घटना की पूरी कहानी जिसने प्रदेश की राजनीति को हिला कर रख दिया था।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय की, जो 1970 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे।उनके कार्यकाल के दौरान एक सरकारी बस कंडक्टर का सस्पेंड किया गया था, जिसके बाद निलंबित बस कंडक्टर ने झारखंड पार्टी के दिग्गज आदिवासी नेता बागुन सुम्ब्रुई से गुहार लगाई।बागुन ने बस कंडक्टर के निलंबन के मामले को लेकर मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद से मुलाकात की और उनके इस फैसले को वापस लेने की अपील की।करीब एक सप्ताह बाद विभाग की ओर से कोई जवाब नहीं आया, जिस पर बागुन ने फिर दारोगा प्रसाद से मुलाकात की और अपनी नाराजगी जाहिर की।
बताया जाता है कि इस घटना के बाद बागुन ने सरकार से समर्थन वापस लेने का एलान कर दिया। तत्कालीन सीएम दारोगा प्रसाद इस मुगालते में थे कि बागुन के समर्थन वापस लेने के बाद भी वे सदन में विश्वास मत हासिल कर लेंगे, लेकिन जब सदन में वोटिंग हुई तो पता चला कि दारोगा प्रसाद विश्वास मत हासिल नहीं कर पाए और उनके पक्ष में सिर्फ 144 विधायक थे।जबकि विपक्ष में 164 विधायक थे। झारखंड से आए बागुन के 11 समर्थकों ने जहां विपक्ष में वोट किया, वामपंथी दल ने भी सरकार का समर्थन नहीं किया।