- जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत नि:शुल्क एंबुलेंस सुविधा देने का प्रावधान
- नवजात शिशुओं को बेहतर चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराने के लिए विभाग संकल्पित
- नवजात शिशुओं के लिए समर्पित है सदर अस्पताल का एसएनसीयू यूनिट
छपरा। नवजात एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने तथा बेहतर चिकित्सकीय सुविधाएं मुहैया कराने के लिए स्वास्थ्य विभाग कृत-संकल्पित है। इस दिशा में स्वास्थ्य के विभाग के द्वारा कई महत्वपूर्ण कदम उठाये जा रहें है। नवजात शिशु मृत्यु दर में कमी लाने तथा गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधा देने के उद्देश्य से जिला अस्पताल में एसएनसीयू यूनिट की स्थापना की गयी है। जिसमें बर्थ एस्फिक्सिया, समय से पहले जन्म, बहुत कम वजन और हाइपोथर्मिया से पीड़ित शिशुओं को विशेष देखभाल प्रदान की जाती है। विभाग ने जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा शुरू की है, जिससे नवजातों को अस्पताल लाने और वापस घर पहुंचाने में मदद मिलेगी।
यह सेवा 01 वर्ष तक उम्र वाले बच्चों के लिए उपलब्ध होगी। राज्य स्वास्थ्य समिति के शिशु स्वास्थ्य के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. विजय प्रकाश ने पत्र जारी कर सभी सिविल सर्जन को आवश्यक दिशा निर्देश दिया है। सभी स्वास्थ्य संस्थानों को निर्देश दिया है कि वे नवजातों को एसएनसीयू में रेफर करने के लिए निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा का उपयोग करें और डिस्चार्ज के बाद नवजात और उनके अभिभावकों को घर पहुंचाने के लिए भी यह सेवा उपलब्ध कराएं।
लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभाग सतत प्रयासरत:
विदित हो कि एसआरएस 2020 के अनुसार राज्य का नवजात मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्म में मृत्यु दर की संख्या 21 है। एसडीजी का लक्ष्य 2030 तक प्रत्येक जीवित नवजात 1000 पर 12 मृत्यु दर तथा नेशनल हेल्थ पॉलिसी का लक्ष्य 2025 तक नवजात 1000 जीवित जन्म पर मृत्यु दर 16 करना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभाग सतत प्रयासरत है।
अप्रैल से अगस्त 2024 तक 449 बच्चों का उपचार:
छपरा सदर अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में अप्रैल से अगस्त 2024 तक कुल 449 नवजात शिशुओं का उपचार किया गया है। जिसमें विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों से आये 102 नवजात शिशुओं और उनके अभिभावकों को नि:शुल्क एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। लेकिन 347 नवजात शिशुओं के अभिभावक स्वयं व्यवस्था कर एसएनसीयू में इलाज के लिए पहुंचे हैं। इसे सुदृढ़ करने का आदेश राज्य स्तर से दिया गया है।
जोखिम के कारणों की पहचान और उचित प्रबंधन से मृत्यु दर में कमी संभव:
सिविल सर्जन डॉ. सागर दुलाल सिन्हा ने बताया कि जन्म के पहले 28 दिनों में नवजात की मृत्यु के अधिकांश मामले होते हैं। हाल के वर्षों में नवजात मृत्यु दर के मामलों में कमी आयी है। इसलिये जोखिम के कारणों की पहचान एवं उसका उचित प्रबंधन नवजात मृत्यु दर के मामले को कम करने के लिये जरूरी है। इसके लिये नवजात के स्वास्थ्य संबंधी मामलों के प्रति व्यापक जागरुकता जरूरी है। यदि नवजात शिशु सुस्त, अस्वस्थ अथवा बीमार मालूम हो तो बिना समय गंवाए नजदीकी अस्पताल में तुरंत ले जाएं। उन्होंने कहा कि नवजात के जन्म के बाद पहले 28 दिन उसके जीवन व विकास के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होता है।
क्या है एसएनसीयू
जिला स्वास्थ्य समिति के डीपीएम अरविन्द कुमार ने बताया कि 34 सप्ताह से पहले पैदा, 1800 ग्राम से कम वजन, चार किलो वाले या 40 सप्ताह में पैदा बच्चों के लिए एसएनसीयू की सुविधा अनिवार्य है। इसके अलावा पेरीनेंटल एफीक्सिया, न्यूओनेटल जुआंडिस, रेस्प्रेटरी डिस्ट्रेस, रेफ्यूजल टू फीड, सेंट्रल क्यूनोसिस, एप्निया या गैस्पिंग, न्यूओनेटल कंवल्सन, बेबी ऑफ डायबिटिक मदर, डायरिया समेत 24 स्थितियों में नवजात का इलाज एसएनसीयू में किया जाता है।
आवश्यकता पड़ने पर एक वर्ष से कम उम्र तक के शिशुओं को भी यहां भर्ती कर उनका इलाज किया जाता है। एनसीयू नवजातों को समर्पित एक यूनिट होती है। जन्म लेने से 28 दिन तक बच्चे को नवजात माना जाता है। जन्म के तुरंत बाद अगर बच्चे में कोई भी स्वास्थ्य संबंधित दिक्कत है तो उसे भर्ती कर लिया जाता है। नवजात तब तक चिकित्सक व स्टॉफ की देखभाल में रहता है जब तक कि वह स्वस्थ न हो जाए।
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