छपरा। सारण जिले के कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक डॉक्टर विनायक,जिला कृषि पदाधिकारी श्याम बिहारी सिंह और पौधा संरक्षण उपनिदेशक राधेश्याम कुमार द्वारा एक एडवाईजरी जारी की गई जिसमें जिले के किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि शीतलहर एवं पाले से फसल की सुरक्षा के उपाय करें। रबी की फसलों को शीतलहर एवं पाले से काफी नुकसान होता है। जब तापक्रम 5-7 डिग्री से.ग्रे. से कम होने लगता है तब पाला पड़ने की पूर्ण संभावना होती है।
पाला पड़ने से फसल को नुकसान की संभावना
हवा का तापमान जल जमाव बिन्दु से नीचे गिर जाये। दोपहर बाद अचानक हवा चलना बन्द हो जाये तथा आसमान साफ रहे या उस दिन आधी रात से ही हवा रूक जाये तो पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है। रात को विशेषकर तीसरे एवं चौथे पहर में पाला पड़ने की संभावना ज्यादा रहती है। साधारणतया तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाये यदि शीत लहर हवा के रूप में चलती रहे तो कोई नुकसान नहीं होता है। परन्तु यही इसी बीच हवा चलना रूक जाये तथा आसमान साफ हो तो पाला अवश्य पड़ता है जो फसलों के लिए नुकसानदायक है।
प्लास्टिक की चादर से पौधों की सुरक्षा
जब भी पाला पड़ने की सम्भावना हो या मौसम पूर्वानुमान विभाग से पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हल्की सिंचाई दे दें। जिससे तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है सिंचाई करने से 2 से 5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में बढ़ोतरी हो जाती हैं। पाले से सबसे अधिक नुकसान सब्जियों की नर्सरी में होता है। नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की चादर से ढकने की सलाह दी जाती है। ऐसा करने से प्लास्टिक के अन्दर का तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है।
रात में 12 बजे धुंआ पैदा कर दें
जिससे सतह का तापमान जमाव बिंदु तक नहीं पहुंच पाता है और पौधे पाले से बच जाते हैं। पॉलीथिन की जगह पर तिरपाल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि पौधों का दक्षिण पूर्वी भाग खुला रहे ताकि पौधों को सुबह व दोपहर को धूप मिलती रहे। अपनी फसल को पाले से बचाने के लिए आप अपने खेत में रात में 12 बजे धुंआ पैदा कर दें जिससे तापमान जमाव बिंदु तक नहीं गिर पाता और पाले से होने वाली हानि से बचा जा सकता है।
जिस दिन पाला पड़ने की सम्भवना हो तब 400 मिलीलीटर सल्फर अर्थात गंधक को 400 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर क्षेत्र में स्प्रेयर पम्प से छिड़काव करें। इसके साथ अगर नैनो यूरिया की 5-6 मिली लीटर प्रति लीटर पानी की दर से (अर्थात 100 मिली लीटर प्रति नैप्सेक यंत्र 16 लीटर क्षमता वाली ) इसी सल्फर वाली घोल के साथ घोल बनाकर फसलों पर छिडकाव करेंगे तो आपके फसलों पर पाला का प्रभाव नही पड़ेगा ।
घोल की फुहार अच्छी तरह लगे
ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की संभावना बनी रहे तो सल्फर अर्थात गन्धक घोल को 15-15 दिन के अन्तर से दोहराते रहें।
अगर जो किसान भाई, पछात किस्म की गेंहू की प्रजाति लगाए है और प्रथम सिंचाई का समय आ गया है तो 20-25 ग्राम प्रति कट्ठा की दर से सल्फर 90% डब्ल्यू.डी.जी. पाउडर को दानेदार यूरिया के साथ मिला दे और साथ मे जिंक 33% पाउडर 5 ग्राम प्रति कट्ठा की दर से उसी यूरिया के साथ 1 एकड़ में छिटे और उसके के बाद सिंचाई करें।
जिन्हें नैनो यूरिया के साथ छिड़काव करना है दर सल्फर और जिंक का वही रहेगा सिर्फ ड्रोन से छिड़काव के समय दर में परिवर्तन होगा और एक एकड़ के लिए जितने उर्वरक का डोज है वही रहेगा सिर्फ पानी मात्रा 10 लीटर हो जाती है ड्रोन से छिड़काव में और मिलाकर स्प्रे करें। बाकी आलू की फसल पर झुलसा रोग से बचाव के लिए पूर्व में ही अडवाइजरी जारी की जा चुकी है उसका अनुसरण करें।
फसलों को बचाने के लिये खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे तोड़ी या सरसो आदि लगा हुआ है उससे भी या लगा दिये जाये तो पाले और ठण्डी हवा के झोंको से फसल का बचाव हो सकता हैं।साथ ही मौसम पूर्वानुमान की समाचारों पर भी ध्यान देते रहे जो विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम किसानों को सूचित की जाती है।
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