छपरा

एमएमडीपी किट के इस्तेमाल से हाथीपांव की बढ़ोतरी पर पाया जा सकता है काबू

– नगरा पीएचसी में फाइलेरिया के हाथीपांव मरीजों के बीच एमएमडीपी किट का हुआ वितरण

– मरीजों को किट के इस्तेमाल के साथ व्यायाम की दी गई जानकारी

छपरा, 29 मई | लिम्फेटिक फाइलेरियासिस यानी फाइलेरिया एक ऐसी बीमारी है, जिसका समय पर इलाज न होने से लोग दिव्यांगता के शिकार हो सकते हैं। इसलिए सरकार ने फाइलेरिया को मिटाने की दिशा में प्रयास तेज कर दिया है। इस क्रम में सारण जिले के सभी प्रखंडों में मोरबिडिटी मैनेजमेंट एंड डिसेबिलिटी प्रिवेंशन (एमएमडीपी) क्लिनिक की शुरुआत की जा रही है। जहां पर फाइलेरिया मरीजों के बीच एमएमडीपी किट के वितरण के साथ उन्हें इसके इस्तेमाल की जानकारी भी दी जाएगी। इस क्रम में सोमवार को जिले के नगरा प्रखंड स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एमएमडीपी क्लिनिक के शुभारंभ के साथ मरीजों के बीच एमएमडीपी किट का वितरण किया गया।

जिसमें एमओआईसी डॉ. महेंद्र मोहन के द्वारा मरीजों को फाइलेरिया के प्रति जागरूक करते हुए उन्हें एमएमडीपी के इस्तेमाल के फायदों के संबंध में भी बताया गया। उन्होंने मरीजों को बताया कि एमएमडीपी किट के नियमित इस्तेमाल से मरीज हाथीपांव की बढ़ोतरी पर काबू पा सकते हैं। लेकिन इसके लिए मरीजों को स्वयं जागरूक होना होगा। तभी जाकर उन्हें हाथीपांव से राहत मिलेगी। जिसके बाद उन्होंने फाइलेरिया के हाथीपांव मरीजों के बीच किट का वितरण किया। साथ ही, की फायदों और कुछ व्यायाम की जानकारी दी। जिससे मरीज अपनी इस बीमारी की रोकथाम स्वयं कर सकें।

पांच से 15 वर्ष में दिखते हैं फाइलेरिया के लक्षण :
एमओआईसी डॉ. महेंद्र मोहन ने बताया कि क्यूलेक्स मच्छर फाइलेरिया संक्रमित व्यक्ति को काटने के बाद किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो उसे भी संक्रमित कर देता। लेकिन संक्रमण के लक्षण पांच से 15 वर्ष में उभरकर सामने आते हैं। इससे या तो व्यक्ति को हाथ-पैर में सूजन की शिकायत होती या फिर अंडकोष में सूजन आ जाती है। महिलाओं के स्तन के आकार में परिवर्तन हो सकता है। हालांकि, अभी तक इसका कोई समुचित इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन शुरुआती दौर में रोग की पहचान होने पर इसकी रोकथाम की जा सकती है। संक्रमित होने के बाद मरीजों को प्रभावित अंगों की सफाई सहित अन्य बातों को समुचित ध्यान रखना जरूरी होता है। साथ ही, नियमित व्यायाम कर मरीज अपने पैरों के सूजन को कम कर सकते हैं। इसके अलावा मरीज सोने समय नियमित रूप से मच्छरदानी का इस्तेमाल करें और अपने पैरों के नीचे तकिया या मसनद का भी प्रयोग करें। जिससे सोते समय उनके पैर ऊपर रहे।

प्रभावित अंगों की सफाई बेहद आवश्यक :
वीबीडीसी सुधीर कुमार ने बताया कि फाइलेरिया ग्रसित अंगों मुख्यतः पैर या फिर प्रभावित अंगों से पानी रिसता है। इस स्थिति में उनके प्रभावित अंगों की सफाई बेहद आवश्यक है। इसकी नियमित साफ-सफाई रखने से संक्रमण का डर नहीं रहता और सूजन में भी कमी आती है। इसके प्रति लापरवाही बरतने से अंग खराब होने लगते हैं। संक्रमण को बढ़ने से रोकने के लिए एमएमडीपी किट और आवश्यक दवा दी जा रही है। फाइलेरिया के लक्षण मिलने पर तत्काल जांच कराएं। उन्होंने बताया कि फाइलेरिया संक्रमित होने पर व्यक्ति को हर महीने एक-एक सप्ताह तक तेज बुखार, पैरों में दर्द, जलन, के साथ बेचैनी, त्वचा में लालीपन की शिकायत होने लगती है। एक्यूट अटैक के समय मरीज को पैर को साधारण पानी में डुबाकर रखना चाहिए या भीगे हुए धोती या साड़ी को पैर में अच्छी तरह लपेटना चाहिए। इससे उन्हें काफी हद तक राहत मिलती है।
कार्यक्रम में वीएल डीपीओ आदित्य कुमार सिंह, वीबीडीएस सुजीत कुमार, केयर बीसी सोनू सिंह, बीएचएम कनीज फातिमा, बीएएम अनिल कुमार, फर्माशिस्ट चितरंजन कुमार व अन्य कर्मी मौजूद रहे।

News Desk

Publisher & Editor-in-Chief

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