सारण जिला की स्थापना की गुत्थी सुलझी, प्रोफेसर लाल बाबू यादव ने की ऐतिहासिक खोज

छपरा
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छपरा। वर्षों से रहस्य बनी हुई सारण जिला की स्थापना तिथि आखिरकार सामने आ गई है। जयप्रकाश विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और वरिष्ठ पत्रकार डॉ. लाल बाबू यादव ने गहन शोध के बाद यह ऐतिहासिक जानकारी उजागर की है कि सारण जिला की स्थापना 17 अक्टूबर 1786 को हुई थी। यह जानकारी उन्होंने मंगलवार देर संध्या एक प्रेस बयान में साझा की।

इससे पहले सारण के जिलाधिकारी अमन समीर द्वारा जिलास्थापना की वास्तविक तिथि जानने के लिए एक विशेष टीम गठित की गई थी, जिसे इस दिशा में सफलता नहीं मिल सकी थी। लेकिन डॉ. यादव ने इस कार्य को अपने नागरिक कर्तव्य का हिस्सा मानते हुए व्यक्तिगत स्तर पर शोध शुरू किया और सफलता हासिल की।

50 वर्षों से शोध और लेखन से जुड़े हैं

डॉ. यादव ने बताया कि यह खोज उनके लिए व्यक्तिगत रुचि का विषय था, क्योंकि वे पिछले 50 वर्षों से शोध और लेखन से जुड़े हैं। उन्होंने पटना स्थित राज्य अभिलेखागार, काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान सहित कई ऐतिहासिक दस्तावेजों का गहन अध्ययन किया। उनका यह शोध बिहार समाज विज्ञान अकादमी के तत्वावधान में संपन्न हुआ, जिसके वे अध्यक्ष भी हैं।

17 अक्टूबर 1786 को अस्तित्व में आया था सारण जिला

डॉ. यादव के अनुसार, सारण जिला की स्थापना ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल में हुई थी। 1757 के पलासी युद्ध और 1764 के बक्सर युद्ध के बाद जब मुगल सम्राट शाह आलम ने बिहार, बंगाल और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को सौंप दी, तब ब्रिटिश हुकूमत ने राजस्व व्यवस्था को मजबूत करने के लिए 1765 में बिहार में कलेक्टरों की नियुक्ति शुरू की।

इसके बाद वॉरेन हेस्टिंग्स और लॉर्ड कार्नवालिस के शासनकाल में, ईस्ट इंडिया कंपनी के निर्देश पर बिहार में आठ जिलों की स्थापना 17 अक्टूबर 1786 को की गई, जिनमें शाहाबाद, सारण, भागलपुर, तिरहुत, बिहार (पटना), पूर्णिया, जंगल तराई और रामगढ़ शामिल थे।

प्रो. यादव ने अपने शोध में प्रो. बी. बी. मिश्रा की पुस्तक जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ ईस्ट इंडिया कंपनी 1773–1834 और ब्रिटिश लेखक वाल्टर केली फर्मिंगर की ऐतिहासिक रिपोर्ट Fifth Report from the Select Committee on the Affairs of the East India Company का भी हवाला दिया है।

इतना ही नहीं, उन्होंने स्व. आई. सी. कुमार के एक शोध आलेख को भी आधार बनाया, जो बिहार विधान परिषद की शताब्दी स्मारिका में प्रकाशित हुआ था।

इस ऐतिहासिक खोज से न केवल सारण जिले की स्थापना की सही तिथि स्पष्ट हो गई है, बल्कि यह शोध प्रशासनिक इतिहास के एक अहम अध्याय को भी उजागर करता है।

जिलावासियों में गर्व की भावना

सारण जिले की स्थापना तिथि के स्पष्ट हो जाने से जिलेवासियों में उत्साह और गर्व की लहर है। स्थानीय इतिहासप्रेमियों और प्रशासनिक अधिकारियों ने डॉ. यादव के इस महत्वपूर्ण कार्य की सराहना की है और इसे इतिहास के दस्तावेजीकरण की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि बताया है।