
पटना। बिहार की राजधानी पटना और उत्तर बिहार को जोड़ने वाला देश का सबसे लंबा एक्स्ट्रा-डोज केबल ब्रिज अब हकीकत बन गया है। सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस ऐतिहासिक परियोजना के पहले चरण का उद्घाटन किया, जिससे पटना के कच्ची दरगाह से राघोपुर हिम्मतपुर तक 6 किलोमीटर लंबा पुल अब आम जनता के लिए खुल गया है। इस परियोजना के चालू होने से राघोपुर दियारा क्षेत्र पहली बार साल भर पटना से सड़क मार्ग से जुड़ गया है।
19.23 किमी लंबा पुल, 4,988 करोड़ की लागत
इस मेगा प्रोजेक्ट की कुल लंबाई 19.23 किलोमीटर है, जिसमें से 9.76 किलोमीटर हिस्सा गंगा नदी पर पुल के रूप में बना है, और शेष एप्रोच रोड है। परियोजना की कुल लागत ₹4,988 करोड़ है, जिसमें ₹696 करोड़ भूमि अधिग्रहण और ₹4,291 करोड़ पुल और सड़क निर्माण पर खर्च हो रहे हैं। अब तक ₹4,500 करोड़ से अधिक की राशि खर्च हो चुकी है।
प्रथम फेज: पटना से राघोपुर तक सीधा संपर्क
फिलहाल चालू हुआ हिस्सा कच्ची दरगाह से लेकर राघोपुर हिम्मतपुर तक है, जो करीब 6 किलोमीटर का है। इस हिस्से में 3.5 किमी लंबा एक्स्ट्रा-डोज केबल ब्रिज और 2.5 किमी एप्रोच रोड शामिल है। राघोपुर जैसे क्षेत्र, जो चारों ओर से गंगा नदी से घिरा है, अब नाव और पीपा पुल पर निर्भर नहीं रहेगा।
60 किलोमीटर तक घटेगी दूरी, जाम से मिलेगा राहत
जब यह पुल पूरी तरह चालू हो जाएगा, तो दक्षिण और उत्तर बिहार के बीच की दूरी लगभग 60 किलोमीटर तक कम हो जाएगी। साथ ही, जेपी सेतु, महात्मा गांधी सेतु और राजेंद्र सेतु पर ट्रैफिक का दबाव भी घटेगा। यह पुल अमस-दरभंगा फोरलेन और बख्तियारपुर फोरलेन से भी जुड़ेगा, जिससे पूरे राज्य की कनेक्टिविटी बेहतर होगी।
ब्रिज की खासियत:
- 67 पिलर, बैलेंस कैंटीलीवर तकनीक से बना
- 150 मीटर के अंतराल पर पिलर, जिससे जहाज भी निकल सकें
- गंगा के जलस्तर से 13 मीटर ऊपर, बाढ़ में भी बाधा नहीं
- प्रत्येक स्पैन 936 टन वजन सहने में सक्षम
- सोलर लाइटिंग, हाई मस्त लाइट और पर्यटकों के लिए डॉल्फिन व्यू बालकनी
- हाईवे म्यूजियम और रिसर्च सेंटर का निर्माण भी प्रस्तावित
दूसरे चरण का कार्य 80% पूरा, सितंबर तक पूरा करने का लक्ष्य
दूसरे चरण में राघोपुर से बिदुपुर के बीच पुल का निर्माण कार्य 80% से अधिक पूरा हो चुका है। इसमें फाउंडेशन, सब-स्ट्रक्चर, पिलर और पाइलॉन का कार्य पूरा कर लिया गया है। यदि गंगा में बाढ़ का असर नहीं पड़ा, तो यह हिस्सा सितंबर 2025 तक जनता के लिए खोल दिया जाएगा।
7,000 मजदूर और 1,000 इंजीनियर कर रहे हैं दिन-रात काम
इस प्रोजेक्ट पर एल एंड टी और कोरियाई कंपनी देबू कार्य कर रही है। निर्माण स्थल पर 7,000 से अधिक मजदूर और 1,000 इंजीनियर व सुपरवाइजर लगातार कार्यरत हैं। अकेले फिनिशिंग के काम में 2,000 मजदूर लगे हैं।
व्यापार और पर्यटन को भी मिलेगा बल
यह पुल फतुहा और सबलपुर इंडस्ट्रियल एरिया को सीधे उत्तर बिहार, पूर्वांचल और नेपाल से जोड़ेगा, जिससे व्यापार को बड़ी राहत मिलेगी। अब ट्रक और मालवाहक वाहनों को गांधी सेतु के जाम से गुजरने की जरूरत नहीं होगी। पुल पर पर्यटकों के लिए विशेष बालकनी प्लेटफॉर्म बनाए जा रहे हैं, जहां से वे गंगा की डॉल्फिन और नदी का मनोरम दृश्य देख सकेंगे।
अब नाव नहीं, सीधा हाइवे संपर्क
अब तक राघोपुर और आसपास के क्षेत्र में लोग नाव या बरसात से पहले पीपा पुल के सहारे गंगा पार करते थे, लेकिन बरसात में पुल हटने से संपर्क कट जाता था। अब इस नए पुल से सालभर सीधा और सुरक्षित संपर्क संभव होगा।
भविष्य का लिंक: पूर्वांचल, झारखंड, ओडिशा और नेपाल से सीधा जुड़ाव
पुल के पूरा होते ही मगध क्षेत्र से लेकर नेपाल सीमा तक की सीधी सड़क कनेक्टिविटी स्थापित हो जाएगी। यह बिहार को पूर्वांचल, झारखंड और ओडिशा से बेहतर तरीके से जोड़ेगा।
स्थानीय लोग बोले – “हमारी जिंदगी की लाइफलाइन बन गया ये पुल”
राघोपुर, फतेहपुर, बीरपुर, जुरावनपुर, चकसिंगार जैसे गांवों के लोग इस पुल को ‘अपनी जिंदगी की लाइफलाइन’ बता रहे हैं। उनका कहना है कि अब स्कूल, अस्पताल, बाजार और सरकारी दफ्तरों तक पहुंचना सहज और सुरक्षित हो गया है।
शिलान्यास से अब तक: 9 साल की यात्रा
- शिलान्यास: 31 जनवरी 2016
- निर्माण एजेंसी: एल एंड टी और देबू (कोरिया)
- मॉडल: PPP (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप)
- विलंब के कारण: भूमि अधिग्रहण, कोरोना, गंगा की बाढ़ व गाद
यह सिर्फ एक पुल नहीं, विकास की नई राह है
कच्ची दरगाह-बिदुपुर गंगा पुल न सिर्फ देश का सबसे लंबा एक्स्ट्रा-डोज केबल ब्रिज है, बल्कि यह आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक रूप से बिहार का कायाकल्प करने वाला प्रोजेक्ट भी है। यह पुल राघोपुर जैसी उपेक्षित धरती को राजधानी से जोड़कर विकास की मुख्यधारा में लाने जा रहा है।