नुक्कड़ नाटक के माध्यम से टीबी के प्रति फैलायी जायेगी जागरूकता

छपरा
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• टीबी उन्मूलन में पंचायत की भूमिका पर होगी चर्चा

• किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है टीबी
• शराब एवं तंबाकू का नशा करने वालों में टीबी का खतरा अधिक

छपरा,22 मार्च । यक्ष्मा उन्मूलन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य 2025 की प्राप्ति के लिए टीबी मुक्त पंचायत की परिकल्पना की गयी है। विश्व यक्ष्मा दिवस पर पिछले वर्षों की भांति इस वर्ष भी 24 मार्च को राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदत्त निःशुल्क सेवाओं , निक्षय पोषण योजना आदि के बारे में व्यापक जानकारी के लिए कार्यक्रम आयोजित किये जाएँ ।

जन सामान्य में टीबी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए नुक्कड़ नाटक एक सशक्त माध्यम है। विश्व यक्ष्मा दिवस, निक्षय दिवस एवं आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर प्रतिमाह आयोजित स्वास्थ्य मेला जैसे अवसरों पर चिह्नित स्थानों पर योजनानुसार नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया जा सकता है। इसको लेकर अपर निदेशक-सह- राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, यक्ष्मा बिहार पटना डॉ. बाल कृष्ण मिश्र ने पत्र जारी कर आवश्यक दिशा-निर्देश दिया है। नुक्कड़ नाटक की गुणवत्ता एवं प्रभावी उपयोगिता के लिए “टीबी उन्मूलन में पंचायत की भूमिका” का आलेख भेजा गया है।

शराब एवं तम्बाकू का नशा करने वालों में टीबी का खतरा अधिक:

टीबी माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नाम से होने वाला एक संक्रामक रोग है, जो हवा के माध्यम से फैलता है। आमतौर पर यह फेफड़ों में होता है, लेकिन हमारे शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है, जैसे आंत, गुर्दे, आदि। टीबी किसी भी आयु वर्ग और आर्थिक स्तर के लोगों को प्रभावित करता है परन्तु इसका प्रकोप एच०आई०वी संक्रमित लोगों, कुपोषित बच्चों, डायबिटीज के रोगियों, शराब एवं तम्बाकू का नशा करने वालों में ज्यादा होता है ।

फेफड़ों के टीबी के सामान्य लक्षण:

• दो या अधिक सप्ताह से खाँसी आना
• बुखार, जो शाम के बढ़ता हो
• वजन घटना
• रात को अधिक पसीना आना
• सीने में दर्द होना
9 से 18 महीने में नियमित उपचार से ठीक हो जाते है मरीज:

सिविल सर्जन डॉ. सागर दुलाल सिन्हा ने बताया कि कोई भी लक्षण (एक या अधिक) पाये जाने पर डॉक्टर से दिखाना जरूरी है। फेफड़ों के टीबी के निदान के लिए छाती का एक्स-रे एवं बलगम ( खराब) नमूने की जाँच सरकारी अस्पताल में कराना चाहिए । टीबी एक गंभीर समस्या है, परन्तु 9 से 18 महीने में नियमित उपचार से रोगी ठीक हो जाते हैं ।

उच्च जोखिम वाले मरीज:
• कुपोषण, एचआईवी, मधुमेह से पीड़ित लोग
• भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र जैसे झुग्गी बस्तियों आदि में रहने वाले लोग
• कम हवादार या बंद कमरे में रहने वाले लोग।