सारण के लाल उदय कुमार ने रचा इतिहास, एक पैर के सहारे 16500 फीट ऊँची चोटी पर लहराया भारत का तिरंगा

छपरा
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

छपरा : आज दुष्यंत कुमार की ‘कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं होता। एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।’ इन पंक्तियों को सारण के उदय कुमार ने चरिचार्थ किया है।मात्र एक पैर के सहारे 91 प्रतिशत दिव्यांगता वाले उदय कुमार ने कंचनजंघा नेशनल पार्क स्थित रेनाक पहाड़ पर 16,500 फीट ऊँची चोटी पर चढ़कर तिरंगा लहराया है। रेनाक की चोटी पर चढ़कर तिरंगा लहराने वाले उदय कुमार सम्भवतः पहले दिव्यांग हैं। उदय कुमार के इस विश्व रिकॉर्ड पर हिमालयान माउंटेनियरिंग इंस्टिट्यूट (एचएमआई) ने प्रसन्नता जाहिर किया है। उदय के इस उपलब्धि से पूरा सारण जिला गौरवांवित महसूस कर रहा है। इस पर्वतारोहण के लिए 5 मार्च से ही उदय यात्रा पर हैं।

उदय की इस सफलता में एचएमआई के ग्रुप कैप्टन जय किशन, सूबेदार महेन्द्र कुमार यादव, रौशन गहतराज, हवलदार आमिर गुरुंग, क्षितिज राय, दीपेन्द्र थापा, करण राय, प्रताप लिम्बु एवं बिनॉय छेत्री की महती भूमिका है। ग्रुप कैप्टन जय किशन ने उदय को बधाई देते हुए बताय कि यह सफलता पूरे विश्व के समक्ष एक प्ररेणा है।

मालूम हो कि मैराथन मैन उदय सारण जिला के बनियापुर प्रखण्ड अन्तर्गत बाडोपुर गाँव के निवासी हैं और कलकत्ता में रहकर निजी कम्पनी में काम करते हैं, जिससे उनके परिवार का बहुत मुश्किल से भरण-पोषण हो पाता है।

विदित हो कि उदय के पिता केदार ठाकुर कोलकाता में ही रेलवे ट्रैक के किनारे फुटपाथ पर साधारण सैलून खोलकर हजामत का काम करते थे। उदय पढ़ने में होनहार थे और उनके पिता उन्हें पढ़ाना भी चाहते थे लेकिन घर की माली हालत देखकर उदय को मैट्रिक के बाद कम उम्र में ही काम पकड़ना पड़ गया और मात्र 14 वर्ष आयु में ही साल 2012 में उदय की शादी भी हो गई। शादी के अगले ही साल उनके बीमार पिता भी चल बसे। खैर, पत्नी की प्रेरणा से उन्होंने बारवहीं तक की शिक्षा पूरी की। अक्टूबर, 2015 की वह रात उनके लिए सबसे काली रात थी, जिसने उनका एक पैर छीन ली।

दरअसल उदय दशहरा की छुट्टी के बाद छपरा से कोलकाता अपने काम पर लौट रहे थे। बलिया-सियालदह एक्सप्रेस कोलकाता शहर में प्रवेश कर गई थी, कुछ ही देर में सियालह स्टेशन पर उदय उतरने वाले थे कि गेट के पास बेसिन-नल का प्रयोग करते समय उनका पाँव फिसल गया और वे बुरी तरह जख्मी हो गये, जिसके बाद डॉक्टरों को उनका एक पैर काटना पड़ गया है और वे सदा के लिए ‘वन लेग उदय’ बन गये। आज इसी नाम से वे अपनी पहचान बना चुके हैं। ‘वन लेग उदय’ नाम से उन्होंने यूट्युब चैनल बनाकर पाँच सौ से अधिक मोटिवेशनल वीडियो अपलोड कर चुके हैं। रेल दुर्घटना में बेटे के पैर गंवाने के बाद उनकी माँ पूरी तरह टूट गई और 2018 में वे भी चल बसीं।

उदय कुमार बताते हैं कि दुर्घटना के बाद मैं बहुत टूट गया था और एक दिन तो आत्महत्या भी करने जा रहा था लेकिन फंदे पर झूलने ही वाला था कि अचानक कहीं से बेटा आ धमका। उन्होंने आगे कहा कि मैराथन में मुझे जीने की उम्मीद मिलती है इसीलिए मैं कम वेतन होने के बावजूद भी वर्किंग डे को ‘नो वर्क, नो पेमेंट’ पर छुट्टी मैराथन में भाग लेने जाता हूँ। अब तक देश के दर्जनों शहरों में करीब 100 मैराथनों में भाग ले चुका हूँ और हर मैराथन में अपने साथ तिरंगा रखता हूँ। इस बार कंचनजंघा पर्वत पर तिरंगा लहराना मेरे लिए जिवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है, इसके लिए मैं ग्रुप कैप्टन जय किशन के प्रति आभारी हूँ। जेपीयू के सेवानिवृत्त राजनीति विज्ञान विभागध्यक्ष डॉ. लालबाबू यादव, जगलाल चौधरी महाविद्यालय, छपरा के अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ. दिनेश पाल एवं डॉ. संदीप कुमार यादव ने उदय कुमार को इस उपलब्धि के लिए बधाई दिया।