न्यूज डेस्क। नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है। माता आदिशक्ति के विभिन्न स्वरूपों में से एक मां दुर्गा की आराधना तो वैसे सभी हिंदू परिवारों में बड़े ही श्रद्धा भाव से की जाती है वही आश्विन मास में होने वाले शारदीय नवरात्र के दौरान दुर्गा पूजा का पर्व बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश और झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
लेकिन इस दुर्गा पूजा का एक ऐसा रहस्य जिसे जानकर आप भी चौंक जायेंगे आज हम उसी रहस्य के बारे में आपसभी को बताने जा रहे है। वैसे तो सभी जानते है कि माता दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण कुम्हार के द्वारा लाई गई मिट्टी से होता है लेकिन बहुत कम लोग जानते है कि आज भी वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल मां दुर्गा की प्रतिमा निर्माण में किया जाता है।
आइए इस अनोखी प्रथा के बारे विस्तार से जानते है जिसके अनुसार माता दुर्गा की प्रतिमा के निर्माण के लिए वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। जिसका नजारा भले ही बिहार और अन्य राज्यों में देखने को न मिले लेकिन पश्चिम बंगाल में यह परंपरा आज भी कायम है।
वास्तव में इस दुर्गापूजा पर्व के दौरान पश्चिमी बंगाल में माता के भक्तों की धूम होती है। इस दौरान सड़कों पर भव्य पंडालों को खूबसूरती से सजाया जाता है। भव्य पांडालों में माता दुर्गा की विशाल मूर्ति स्थापित की जाती है। जिसकी पूजा अर्चना पूरे उत्सव के दौरान की जाती है और विजयदशमी के दिन उसका विसर्जन कर दिया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दुर्गा पूजा में जो दुर्गा माता की मूर्ति स्थापित की जाती है उसका निर्माण किस मिट्टी से किया जाता है? अगर हां, तो हम आपको बताने जा रहे हैं इससे जुड़े एक रोचक तथ्य के बारे में।
जी हां वेश्यालय की मिट्टी से बनती है माता दुर्गा की प्रतिमा और इसके साथ ही 3 चीजे और इस्तेमाल की जाती है।दुर्गा पूजा के दौरान पूजा की जाने वाली माता दुर्गा की मूर्ति कोलकाता के सोनागाछी से खरीदी गई मिट्टी से बनाई जाती है। दरअसल ये कोलकाता का रेड लाइट एरिया है जहां वेश्याएं अपना जीवन यापन करने हेतु कुछ बुरे कर्मों में लिप्त रहती हैं। लेकिन मान्यतानुसार जब तक इस जगह की मिट्टी नहीं मिलती है तब तक दुर्गा मूर्ति का निर्माण अधूरा माना जाता है। यदि किसी वजह से इस मिट्टी के बिना ही दुर्गा प्रतिमा बना दी जाती है तो उस मूर्ति का पूजन माता दुर्गा स्वीकार नहीं करती हैं।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार दुर्गा पूजा के लिए माता दुर्गा की जो मूर्ति बनाई जाती है उसके लिए 4 चीजें बहुत जरूरी होती हैं। पहली गंगा तट की मिट्टी, दूसरी गोमूत्र, तीसरा देशी गाय का गोबर और वेश्यालय की मिट्टी या किसी भी ऐसे स्थान की मिट्टी जहां जाना निषेध माना जाता हो। इन सभी को मिलाकर बनाई गई मूर्ति ही पूर्ण मानी जाती है। ये रस्म कई वर्षों से चली आ रही है।
इस पूरी रस्म के दौरान सबसे ज्यादा आश्चर्य में डालने वाली बात है आम जनमानस में अपवित्र माने जाने वाले वेश्यालय जहां की मिट्टी से पवित्र दुर्गा मूर्ति का निर्माण किया जाता है।अब आप ये भी जानना चाहेंगे कि आखिर वेश्यालय से यह मिट्टी लाता कौन है?ऐसी मान्यता है कि मंदिर का पुजारी या मूर्तिकार वेश्यालय के बाहर जाकर वेश्याओं से उनके आंगन की मिट्टी भीख में मांगता है। मिट्टी के बिना मूर्ति निर्माण अधूरा है इसलिए मूर्तिकार तब तक मिट्टी को भीख स्वरूप मांगता है जब तक कि उसे मिट्टी मिल न जाए। अगर वेश्या मिट्टी देने से मना भी कर देती है तो भी वह उनसे इसकी भीख मांगता रहता है। प्राचीन काल में इस प्रथा का हिस्सा केवल मंदिर का पुजारी ही होता था लेकिन जैसे -जैसे समय बदला पुजारी के अलावा मूर्तिकार भी वेश्यालय से मिट्टी लाने लगा और ये प्रथा अभी भी जारी है।
वास्तव में यह सुनकर थोड़ा अटपटा लगता है लेकिन इसकी वास्तविकता के पीछे कई कारण बताए जाते हैं। इसका पहला कारण यह माना जाता है कि जैसे ही कोई व्यक्ति वेश्यालय में प्रवेश करता है वह अपनी पवित्रता द्वार पर ही छोड़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि भीतर प्रवेश करने से पूर्व उसके अच्छे कर्म और शुद्धियां बाहर ही रह जाती हैं और वेश्यालय के आंगन की मिट्टी सबसे पवित्र होती है इसलिए उसका प्रयोग दुर्गा मूर्ति के लिए किया जाता है।
दूसरी मान्यता के अनुसार वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों को समाज से बहिस्कृत माना जाता है और उन्हें एक सम्मानजनक दर्जा दिलाने के लिए इस प्रथा का चलन शुरू किया गया। उनके आंगन की मिट्टी को पवित्र माना जाता है और उसका उपयोग मूर्ति के लिए किया जाता है। वास्तव में इस त्यौहार के सबसे मुख्य काम में उनकी ये बड़ी भूमिका उन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल करने का एक बड़ा जरिया है।
इसके पीछे एक सबसे प्रचलित कहानी के अनुसार कहा जाता है कि पुराने समय में एक वेश्या जो कि माता दुर्गा की अनन्य भक्त थी। उसे समाज में तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने स्वयं आकर दर्शन दिए और वहां मौजूद भक्तो को आदेश देकर, उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित करने की परंपरा शुरू करवाई। इसी के साथ ही उन्हें वरदान दिया कि जब तक वेश्यालय की मिट्टी के उपयोग प्रतिमा निर्माण में नही किया जायेगा तब तक दुर्गा प्रतिमाओं को पूरा नहीं माना जाएगा और पूजा अधूरी मानी जाएंगी तभी से वेश्यालय की मिट्टी से दुर्गा प्रतिमा का निर्माण करने की प्रथा प्रचलित हुई।
इन सभी मान्यताओं की वजह से इस अनोखी प्रथा का चलन शुरू हुआ और दुर्गा प्रतिमा के निर्माण के लिए वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल जरूरी हो गया जो कि आज तक चला आ रहा है।
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