पति-पत्नी से माता-पिता तक खतरे में रिश्ते, नैतिक गिरावट पर चिंता
नैतिकता का पतन और बढ़ते अपराध, समाज को चेतावनी

छपरा : आज जब हम समाचार पत्रों, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर नज़र डालते हैं, तो चारों ओर अपराध, हिंसा, धोखा और अमानवीय घटनाओं की भरमार दिखाई देती है। यह स्थिति इस बात का संकेत देती है कि हमारा समाज घोर कलयुग के प्रभाव में प्रवेश कर चुका है। उक्त विचार शहर के श्यामचक स्थित संजीवनी नर्सिंग होम एवं मैटरनिटी सेंटर के संस्थापक एवं प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. अनिल ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि आज समाज में रिश्तों की पवित्रता और नैतिक मूल्यों का तेज़ी से पतन हो रहा है। पति-पत्नी के रिश्तों में विश्वास की कमी, पारिवारिक संबंधों में बढ़ती दरारें और स्वार्थ की भावना ने इंसानी संवेदनाओं को कमजोर कर दिया है। आए दिन ऐसी घटनाएँ सामने आती हैं, जहाँ पत्नी पति की हत्या कर देती है या बेटा अपने ही माता-पिता को बेरहमी से मार देता है। ये घटनाएँ न केवल दिल दहला देने वाली हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि समाज में मानसिक संतुलन, नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों में कितनी गहरी गिरावट आ चुकी है।
बढ़ते अपराध केवल कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं
डॉ. अनिल ने कहा कि बढ़ते अपराध केवल कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं हैं, बल्कि यह हमारे सामाजिक और पारिवारिक ताने-बाने के टूटने का संकेत भी देते हैं। पहले रिश्तों में अपनापन, त्याग और विश्वास होता था, लेकिन आज उनकी जगह स्वार्थ, लालच और दिखावे ने ले ली है। माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी और मित्रों के बीच भी अब स्वार्थ हावी होता जा रहा है। परिवार, जो कभी प्रेम और सहयोग का केंद्र हुआ करता था, अब झगड़ों और मतभेदों का अखाड़ा बनता जा रहा है।
उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि छोटी-छोटी बातों पर हत्या, बलात्कार, लूटपाट और धोखाधड़ी जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं। लोग नैतिकता और ईमानदारी को त्यागकर किसी भी तरह धन और सफलता हासिल करना चाहते हैं, चाहे इसके लिए दूसरों का शोषण ही क्यों न करना पड़े। पहले लोग जीवन में धैर्य रखते थे और कठिनाइयों का सामना संयम से करते थे, लेकिन आज गुस्सा और अधीरता लोगों के व्यवहार पर हावी हो गई है।
डॉ. अनिल ने यह भी कहा कि धर्म अब आत्मशुद्धि और नैतिकता का माध्यम न रहकर केवल दिखावे का साधन बनता जा रहा है। लोग दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन स्वयं उन मूल्यों पर चलने से कतराते हैं। संयुक्त परिवारों के टूटने, आर्थिक दबाव, व्यक्तिगत इच्छाओं के टकराव और रिश्तों में बढ़ते तनाव के कारण लोग मानसिक रूप से अस्थिर हो रहे हैं, जिससे वे गलत और हिंसक निर्णय लेने लगे हैं।
इंटरनेट और सोशल मीडिया पर हिंसा और अनैतिकता को जिस तरह सामान्य रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, उसने भी समाज पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। इसके साथ ही अपराधियों को सजा मिलने में देरी और कानूनी प्रक्रियाओं की कमजोरी ने अपराध करने का भय कम कर दिया है।
नैतिक शिक्षा जरूरी
हालाँकि डॉ. अनिल का मानना है कि यदि परिवार, समाज और सरकार मिलकर ठोस कदम उठाएँ, तो इस नैतिक गिरावट को रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि माता-पिता को बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए, उन्हें नैतिक शिक्षा देनी चाहिए और सही-गलत का भेद सिखाना चाहिए। तनाव, अवसाद और गुस्से जैसी मानसिक समस्याओं को नज़रअंदाज़ करने के बजाय समय पर काउंसलिंग और थेरेपी अपनानी चाहिए।
उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि अपराधियों को त्वरित और कठोर सजा मिलनी चाहिए, ताकि समाज में कानून का भय बना रहे। स्कूलों में नैतिक शिक्षा, सहानुभूति और सामाजिक मूल्यों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। साथ ही मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म पर सकारात्मक, प्रेरणादायक और नैतिकता से जुड़े कंटेंट को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
हम अपने कर्मों को सही दिशा में रखें
अंत में डॉ. अनिल ने कहा कि समाज में नैतिकता और इंसानियत को बनाए रखना केवल सरकार या कानून का काम नहीं है। हर व्यक्ति को अपने स्तर पर आत्ममंथन कर बदलाव की शुरुआत करनी होगी। घोर कलयुग के इस अंधकारमय दौर में भी यदि हम अपने कर्मों को सही दिशा में रखें, तो समाज में अच्छाई की एक नई किरण अवश्य जगाई जा सकती है।



