बिहार डेस्क। भारतीय समाज में शिक्षा और वैचारिक सोच में बदलाव होने के बावजूद बेटा या बेटी के प्रति अधिकांश लोगों में आज भी अनचाहत बनी हुई हैं. आज भी हमारे समाज में लड़कियों के जन्म को बोझ माना जाता है. ऐसे में भ्रूण जांच में बेटी का जन्म होने की संभावना है तो कई लोग गर्भपात कराने तक से नहीं हिचकिचाते हैं.
ऐसे में अब आपके मन में यह सावल जरूर आ रहा होगा कि क्या PC-PNDT एक्ट के तहत बच्चे के जेंडर का खुलासा करने पर डॉक्टर, क्लीनिक या आम इंसान को कितनी सजा दी जा सकती है? एक से ज्यादा बार ऐसा करने पर सजा और जुर्माना कितना बढ़ जाता है? आइए जानते हैं इस एक्ट के नियमों के बारे में.
क्या है PC-PNDT एक्ट?
एक दौर ऐसा था जब देश में कन्या भ्रूण हत्या से जुड़े मामले हजारों की संख्या में आते थे. इस अपराध पर लगाम लगाने के लिए गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 (PC-PNDT Act) लाया गया. इस कानून को लाने का प्रमुख उद्देश्य देश में गिरते लिंगानुपात को कंट्रोल करना और डिलीवरी से पहले बचे के लिंग को पता लगाने पर रोक लगाना था.
क्या है इस एक्ट के नियम?
नियमों के अनुसार, यह एक्ट अल्ट्रासाउंड मशीन के जरिए से गर्भ में पल रहे बच्चे में आनुवांशिक असमान्यताओं, मेटाबॉलिज्म डिसऑर्डर, जन्मजात विकृतियों और लिंग से जुड़ी दिक्कतों को इस एक्ट के नियम के अनुसार, जानकारी देने की अनुमति दी जाती है. वहीं, अगर आप इस मशीन के माध्यम से जेंडर का पता लगाते हैं तो एक्ट के नियमों के अनुसार, ऐसे कामों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. इसके अलावा आप सांकेतिक रूप में भी जेंडर रिवील नहीं कर सकते हैं.
इस एक्ट में कितने साल की सजा का प्रावधान?
अगर कोई व्यक्ति किसी भी माध्यम के जरिए बच्चा पैदा होने से पहले उसके जेंडर से जुड़ी जानकारी शेयर करता है. तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को तीन साल की सजा हो सकती है. वहीं, उसके ऊपर 10000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
पेरेंट्स को कितने साल की होगी सजा?
वहीं इस एक्ट में सेक्शन-4 के सब सेक्शन-2 के तहत अगर कोई पेरेंट्स जेनेटिक लैब या अल्ट्रासाउंड क्लीनिक पर जाकर गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग परीक्षण कराते हैं. तो उनपर 50 हजार का जुर्माना लग सकता है और तीन साल तक की सजा हो सकती है.
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