छपरा में दक्षिण भारत का अहसास दिलाता है यह मंदिर, द्रविड़ पद्धति से होती है पूजा-अर्चना

छपरा

छपरा। बिहार के सारण में ऐसा मंदिर है, जहां जाने पर भ्रम में पड़ जाएंगे कि आप दक्षिण भारत में नहीं आ गए हैं. सारण का गजेंद्र मोक्ष देवस्थानम नामक मंदिर है, जो आपको दक्षिण भारत में होने का अहसास कराता है. यह मंदिर सोनपुर अनुमंडल के हरिहर क्षेत्र में गंगा-गंडक के संगम के संगम पर स्थित है. इस मंदिर को स्थानीय भाषा में नौलखा मंदिर (Saran Naulakha Temple) कहा जाता है, जो भक्तों के लिए आस्था का केंद है.

त्रिदंडी स्वामी जी महराज ने कराया मंदिर का निर्माणः दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला से बना मंदिर अपने आप में अनोखा है. उत्तर भारत में यह पहला मंदिर है, जो दक्षिण भारत की स्थापत्य कला से बनाया गया है. इस मंदिर के बारे में यहां के पुजारी जगद्गुरु लक्ष्मणचार्य जी महाराज ने खास जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इस मंदिर का निर्माण बक्सर के त्रिदंडी स्वामी जी महराज के द्वारा किया गया था.
1999 में बनकर तैयार हुआ मंदिरः पुजारी ने बताया कि इस स्थल पर भगवान श्रीहरि ने गजेंद्र को ग्राह के चंगुल से मुक्त कराकर मोक्ष प्रदान किए थे. 1942 में जब दंडी स्वामी जी महराज छपरा में आए तो गजेंद्र मोक्ष भगवान ने स्वामी जी को दर्शन दिए. उन्होंने इस स्थल पर मंदिर बनवाने के लिए कहा था. इसके बाद इस मंदिर का शिलान्यास 1993 में किया गया. 31 जनवरी 1999 को यह मंदिर बनकर तैयार हुआ था.

दक्षिण भारत से उद्घाटन करने आए थे पुजारीः पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर का उद्घाटन भी अनोखे तरीके से किया गया था. 1999 में दक्षिण भारत से 108 और उत्तर भारत से 108 पुजारी ने वैदिक मंत्र उच्चारण के बीच मंदिर का उद्घाटन किया था. इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति रोग या किसी अन्य कारण से परेशान है और वह सच्ची श्रद्धा से आकर पूजा करता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है. पंडित के अनुसार यहां द्रविड़ पद्धति से पूजा होती है.

“भगवान श्रीहरि ने गजेंद्र को ग्राह के चंगुल से मुक्त कराकर मोक्ष प्रदान किए थे. 1942 में त्रिदंडी स्वामी जी महराज का छपरा के ककनिया ग्राम में आगमन हुआ था. इसी दौरान गजेंद्र मोक्ष भगवान ब्रह्मचारी वेश में दर्शन दिए थे. उन्होंने त्रिडंडी स्वामी से मंदिर का निर्माण कराने के लिए कहा था. 1993 में शिलान्यास व 1999 में मंदिर का निर्माण किया गया. यहां भक्तों को किसी भी समस्या से मुक्ति मिलती है.” – जगद्गुरु लक्ष्मणचार्य जी महाराज, पुजारी