बिहार डेस्क। मन में हो संकल्प सजल , साधन निर्मल निश्छल….अम्बर क्या धरती पर स्वर्ग उतर आए। आचार्य जानकी बल्लव शास्त्री की इन पंक्तियों को सिकंदरा प्रखंड के सबलबीघा गांव के वासुकी दुबे की बेटी ‘निभा’ ने चरितार्थ करके दिखाया है। 13 साल की उम्र में ‘निभा’ और उनके दो छोटे भाइयों के सिर से उनके पिता बासुकी दुबे का साया उठ गया। ‘निभा’ के पास आजीविका का कोई साधन नहीं था। सगे-संबंधियों ने भी मुंह मोड़ लिया था। आस-पड़ोस का भी कोई सहयोग नहीं था। सामने पहाड़ सी जिंदगी अंधकारमय दिखाई दे रही थी। क्या करें, न करें, बिल्कुल उहापोह की स्थिति थी। गांव के गलियारों में चहकने और फुदकने वाली यह नन्हीं चिड़िया ‘निभा’ जैसे शांत और निर्जीव सी हो गयी थी। कहते हैं कि ईश्वर जब कोई विपत्ति देता है तो साथ में उससे लड़ने की भी छमता देता है। 2004 में जब ‘निभा’ के सिर से पिता का साया उठा, तो वह 9वीं कक्षा में पढ़ती थी। 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली ‘निभा’ ने हार नहीं मानी और पहाड़ जैसी विपत्ति के सामने डटकर खड़ी हो गई।
वह उन परिवार की छोटी-छोटी बच्चियों को पढ़ाने लगी, जो शिक्षा से बिल्कुल दूर थे। इस बीच ‘निभा’ को एक स्वयं सेवी संगठन का भी सहारा मिला। ‘निभा’ के त्याग और शिक्षा के प्रति अदम्य समपर्ण को देख संगठन ने उसे गरीब और अभिवंचित वर्ग के टोले में पढ़ाने का काम दिया। साथ ही कुछ पारिश्रमिक भी देने लगे। तो उसे गरीब और अभिवंचित वर्ग के टोले में पढ़ाने का काम दिया और कुछ पारिश्रमिक भी देने लगे। इस छोटी सी सहायता से ‘निभा’ ने न केवल अपनी छोटी सी गृहस्थी संभाली; बल्कि 2006 में मैट्रिक की परीक्षा भी पास कर ली।
2008 में ‘निभा’ ने एक स्वेच्छिक संगठन क्षत्रियकुण्ड सेवा समिति में सिलाई का कोर्स सीखा। उसकी लगन और मेहनत से प्रभावित होकर संगठन ने 2012 में निभा को अपने संगठन में इंस्ट्रक्टर बना दिया। फिर क्या अपनी बूढ़ी मां और दो छोटे भाइयों की परवरिश और उसकी शिक्षा-दीक्षा का भार संभालने लगी। इस बीच ‘निभा’ ने इंटर की परीक्षा पास कर ली। आर्थिक तंगी के कारण निभा आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई जिसका उसे मलाल है।
बहरहाल, उसने आज अपने भाइयों को उच्च शिक्षा दिलाकर उस काबिल बना दिया, जो इसकी चाहत थी। ‘निभा’ बताया कि उसका एक भाई बंगलोर में फ्लिपकार्ट कंपनी में कार्यरत है, तो दूसरा भाई झारखंड के देवघर में स्वयं सेवी संगठन में जुड़कर काम कर रहा है। ‘निभा’ ने कहा कि मैं संकल्पित थी कि वह तबतक शादी नहीं करेगी, जबतक उसका भाई पढ़ा-लिखकर अपने पैरों पर न खड़ा हो जाए।
दोनों भाइयों के आत्मनिर्भर की राह पकड़ने के बाद ‘निभा’ ने सामाजिक परंपरा का निर्वहन करते हुए चार साल पहले शादी की बंधन में बंध गई।इस तरह ‘एक विवाह ऐसा भी’ रील लाइफ की स्टोरी को रियल लाइफ में जीने वाली निभा के लिए महिला सशक्तिकरण एक अद्भुत उदाहरण माना जाता है।
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