
पटना। भारतीय सिनेमा और राजनीति का रिश्ता बहुत पुराना रहा है । देश के आजादी के समय से लेकर अब तक के इतिहास को विस्तारपूर्वक देखा जाए तो सिनेमाई पर्दे के कई सुपरहिट चेहरों को राजनैतिक दलों ने जमकर चुनावों में वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया तो कई खुद ही सिल्वर स्क्रीन की इस चकाचौंध को छोड़कर राजनीति में अपना भविष्य बनाने आये । सिनेमा इंडस्ट्री से एनटीआर, जय ललिता, सुनील दत्त, कमल हासन, देवानंद, विनोद खन्ना, मुकेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी, गोविंदा, सन्नी देओल, शत्रुघ्न सिन्हा, नुसरत जहाँ, मिथुन चक्रवर्ती , मनोज तिवारी, रवि किशन, दिनेश लाल यादव निरहुआ, और इनके अलावा भी कई ऐसे बड़े नाम हैं जिन्होंने शोहरत की बुलंदियों की चाह लेकर या देशहित की चाह में राजनीतिक पारियां शुरू की उसमें से चुनिंदा लोग ही सफ़लता को प्राप्त कर दीर्घ समय तक राजनीति में टिक पाए वहीं अधिकतर लोग एक से दूसरे टर्म के लिए भी अपनी दावेदारी नहीं पेश कर पाए ।
उन्हीं चेहरों की फेहरिश्त में इसबार के लोकसभा चुनावों में एक नाम और जुड़ने जा रहा है भोजपुरिया सिनेमा के पावर स्टार कहे जाने वाले सुपरस्टार अभिनेता पवन सिंह का । वैसे निजी तौर पर भी पवन सिंह अक्सर विवादों में घिरे रहने वाले सुपरस्टार रहे हैं लेकिन इसबार के चुनावी रण में वे अपनेआप को किस प्रकार नियंत्रित रख पाते हैं यह देखना काफी दिलचस्प होगा । क्योंकि उनके अधिकतर साथियों को भाजपा ने अपने सूची में स्थान देकर सीट कन्फर्म भी कर दिया है लेकिन पवन सिंह अब भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर इस चुनाव में नहीं खड़ा हो पाएंगे । वैसे तो इस लोकसभा चुनाव में बिहार की धरती से ही गुंजन सिंह, मनीष कश्यप, पवन सिंह , आईपीएस आनंद मिश्रा जैसे धुरंधर बड़ी पार्टियों से टिकट की आस लगाए बैठे थे इनमें से पवन सिंह को भाजपा ने आसनसोल से उम्मीदवार भी बनाया था लेकिन निजी कारणों का हवाला देते हुए खुद पवन सिंह ने आसनसोल से मिला वो टिकट लौटा दिया था । उसके बाद वो लंबे समय तक इंतजार में रहे कि पार्टी उन्हें किसी और जगह से टिकट दे तो वो प्रचार प्रसार में लग जाएं लेकिन ये इंतज़ार की घड़ी खत्म ही नहीं हुई और अंत समय तक कहीं से पार्टी सिंबल नहीं मिल पाने के कारण इन्होंने आखिरी में रोहतास जिले के काराकाट संसदीय क्षेत्र से अपनी निर्दलीय उम्मीदवारी की घोषणा कर दिया । यहां पर आकर पवन सिंह की दावेदारी से मामला सुलझने की बजाए काफी उलझ गया है और अब लोग इसबात की भी चर्चा करने लगे हैं कि पवन सिंह को वोट करने के चक्कर मे कहीं बाकी सीटों पर भाजपा को नुकसान न उठाना पड़ जाए । दरअसल पवन सिंह भारतीय इतिहास के सबसे समृद्ध इतिहास वाले राजपूत बिरादरी से आते हैं और आरा संसदीय क्षेत्र जो कि पवन सिंह का गृह जिला भी है वहां से भाजपा के राज कुमार सिंह ( वर्तमान में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ) के विरुद्ध खड़ा नहीं हुए जिसके कारण यह भी चर्चा जोरों पर है कि पवन सिंह ने अपने स्वजातीय उम्मीदवार की कुर्सी बचाने की खातिर अपने गृह जिला को छोड़कर काराकाट का रुख किया है । और यही बात काराकाट संसदीय क्षेत्र से एनडीए उम्मीद्वार रालोसपा से उपेंद्र कुशवाहा जोर शोर से उठा रहे हैं ।
बल्कि काराकाट के स्थानीय निवासियों से बात करने पर वे सीधे पवन सिंह पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि पवन सिंह को तो आरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहिए था, वो यहां से जितने के लिए नहीं बल्कि राजपूत वोटरों के वोट इकट्ठे काटकर सिर्फ उपेंद्र कुशवाहा को हराने के मकसद से खड़ा हो रहे हैं ऐसे में सम्भव है कि आरा संसदीय क्षेत्र के कुशवाहा वोटर भी आर के सिंह को वोट ना करके चुपचाप बैठ जाएं या फिर महागठबंधन के प्रत्याशी को वोट कर दें ऐसे में भाजपा लीड गठबन्धन को दो सीटों का सीधे तौर पर नुकसान हो सकता है जिसकी प्रबल संभावना दिखाई पड़ रही हैं। अब देखना काफी दिलचस्प हो गया है कि एनडीए गठबंधन आगे क्या निर्णय लेती है क्योंकि अभी आरा और काराकाट में सबसे आखिरी चरण में चुनाव 1 जून को होना निर्धारित हुआ है । ऐसे में पार्टी थिंकटैंक के पास अभी काफी समय पड़ा हुआ है जिससे कि वो वर्तमान समस्याओं का कोई वैकल्पिक तोड़ निकाल सके ।
इसके अलावा भोजपुरी गायक, अभिनेता गुंजन सिंह ने भी इस चुनाव में नवादा से खड़ा होकर भाजपा उम्मीदवार विवेक ठाकुर का गेम बिगाड़ सकते हैं। दरअसल नवादा सीट एनडीए और महागठबंधन दोनों के गले की फांस बन गई है । एक ओर जहां गुंजन सिंह ने विवेक ठाकुर के खिलाफ मोर्चा खोला है वहीं महागठबंधन से उम्मीद्वार श्रवण कुशवाहा के खिलाफ राजद के विनोद यादव ने दो विधायकों, एक एमएलसी और जिला परिषद के समर्थन से अपनी दावेदारी भी ठोक दिया है , ऐसे में क्या गुंजन सिंह वो सीट निकाल पाएंगे यह देखना काफी दिलचस्प होने वाला है । इनके नामांकन के समय चर्चित युट्यूबर मनीष कश्यप भी नवादा में गुंजन सिंह के साथ दिखाई पड़े थे , वो भी भाजपा से अपने संसदीय क्षेत्र पश्चिमी चंपारण सीट से वर्तमान भाजपा सांसद संजय जायसवाल के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में उतर गए हैं । मनीष कश्यप ने कहा कि पूरे संसदीय क्षेत्र में कोई काम नहीं हुआ है और वे वंशवाद के ख़िलाफ़ चुनावी मैदान में उतरे हैं । इनके चुनाव में उतरने से पश्चिमी चंपारण में भी चुनावी पारा काफी गर्म हो गया है क्योंकि मनीष कश्यप पिछले काफी समय से बिहार की राजनीति में एक चमकते हुए धूमकेतु की तरह दिखाई पड़ रहे हैं वे अप्रवासी मजदूरों के शोषण पर एक वीडियो शेयर करने के चलते कई महीनों तक तामिलनाडु की जेल में भी बन्द रहे थे । इनके अलावा बिहार के बक्सर सीट से भी बगावत की बू नजर आ रही है जहां एक आईपीएस आनंद मिश्रा ने स्थानीय बनाम पैराशूट उम्मीदवार की जंग छेड़ दिया है । उनका कहना है कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के द्वारा टिकट देने का आश्वासन दिए जाने के कारण ही उन्होंने अपनी सर्विस छोड़कर राजनीति में आने की बात कबूल किया था , और अब यहां से गोपालगंज के रहने वाले मिथलेश तिवारी को सीट देकर भाजपा नेतृत्व ने भारी भूल कर दिया है। हम स्थायी निवासी यहीं के लोकल हैं और मोदी जी के वोकल फ़ॉर लोकल की तर्ज पर अपनी उम्मीदवारी पेश कर रहे हैं ।





कुल मिलाकर पवन सिंह समेत सभी नए उम्मीदवारों ने इस चुनावी जंग के मैदान में उतरकर इसबार लोकसभा चुनाव का पारा ऑल टाइम हाई कर दिया है और अब सबको बेसब्री से आगामी 4 जून का इंतज़ार रहेगा कि इस महासमर में कौन कौन से नए प्रत्याशी अपना झंडा बुलंद कर पाते हैं ! या फिर इनका चुनावों में उतरना बस महज एक जोश में आकर उठाया गया कदम बनकर रह जायेगा ।
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