छपरा में सरकारी सिस्टम का ऐसा कारनामा, जिंदा आदमी को बना दिया मुर्दा

छपरा
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छपरा। सरकारी सिस्टम का ऐसा कारनामा है, जिसे जानकर आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे. दरअसल छपरा में दो बुजुर्गों की पेंशन एक साल से बंद है. परेशान बुजुर्ग महीनों तक इंजतार करने के बाद प्रखंड कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं.काफी खोजबीन के बाद उनको बताया गया कि आपकी मौत हो चुकी है. इसी वजह से पेंशन बंद है. अब वो दोनों बुजुर्ग कह रहे हैं कि साहब मैं जिंदा हूं. आपके सिस्टम ने मुझे मार दिया. आपको बता दें कि ये मामला छपरा के एकमा प्रखंड की है.छपरा के चचौरा पंचायत के बंशी छपरा के रहने वाले 85 साल के शुभनारायण सिंह 70 साल की विधवा बसंती देवी का नाम पेंशन लिस्ट से गायब है. हद तो तब हो गई जब उनके नाम के आगे ऑप्शन में मृतक लिखा गया.

अब ये दोनों बुजुर्ग उनके परिजन अधिकारियों के ऑफिस के चक्कर लगाकर जिंदा होने का प्रमाण पत्र दे रहे हैं.वहीं, चंचौरा पंचायत के विकास मित्र गुड्डू राम का कहना है कि उन्होंने प्रखंड कार्यालय के निर्देश पर जीवन प्रमाणिकरण फॉर्म को भर प्रखंड कार्यालय को सुपुर्द कर दिया है. इस दौरान आईटी सहायक से सिस्टम पर लोड करते वक्त गलती हुई है. जिसकी वजह से जिंदा आदमी मृतक की लिस्ट में शामिल हो गया. जबकि इस मामले में प्रखंड आईटी सहायक सैयद अंसारी का तर्क है कि इसे पंचायत स्तर पर ही अपलोड किया गया है. मतलब साफ है यहां एक दूसरे पर गलती थोपी जा रही है. जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं. वहीं, इस घटना को लेकर डीएम राजेश मीणा ने संज्ञान लिया है

इस पूरे मामले की जांच की बात कही है.दरअसल हर साल सामाजिक सुरक्षा कोषांग के तहत बुजुर्ग पेंशनरों का सत्यापन किया जाता है. जिसे ऑनलाइन भी किया जाता है. अगर इस प्रक्रिया में कोई लाभुक छूट गया तो आरटीपीएस, पंचायत सचिव, विकास मित्र आंगबाड़ी इसकी जांच करती है छूटे हुए लोगों को ऑफलाइन जीवन प्रमाण पत्र देकर उसे प्रखंड कार्यालय में जमा किया जाता है ताकि उनके पेंशन में कोई रुकावट न हो, लेकिन जीवन प्रमाणिकरण के दौरान जब फार्म को आरटीपीएस काउंटर से अपलोड किया जा रहा था. इसी दौरान ये गड़बड़ी हुई जिंदा दो बुजुर्गों को सिस्टम ने मृत घोषित कर दिया.

बहरहाल अब इस मामले में जांच की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है गलती को सुधार कर फिर से पेंशन योजना शुरू करने की कवायद शुरू की गई है, लेकिन सवाल ये उठता है कि सिस्टम की लापरवाही से दो बुजुर्गों को अपने जिंदा होने का सबूत देने के लिए दर-दर भटकना पड़ा.