छपरा। पाक महीना रमजान के दूसरे जुमा की नमाज अदा करने के लिए मसजिदों में रोजेदारों की खासी भीड़ उमड़ पड़ी. जुमा की नमाज अदा करने के लिए रोजेदारों के मस्जिदों में आने का क्रम दोपहर 12 बजे से ही शुरू हो गया. हजारों रोजेदारों ने नमाज अदा करके मुल्क में अमन चैन की दुआ मांगी. मस्जिदों में वक्ता व इमामों ने कहा कि रमजान माह का दूसरा अशरा चल रहा है.
यह असरा मगफिरत का होता है. हर रोजेदार को गुनाहों से तौबा कर अल्लाह ताला से माफी मांगनी चाहिए. एक नई जिंदगी को शुरू करने का इरादा करना चाहिए. रमजान के माह में लोगों के साथ हमदर्दी करना रमजान का सबसे बड़ा काम है. इस माह में प्रत्येक रोजेदार को ईद से पूर्व फितरा निकालना चाहिए. प्रत्येक रोजेदार को पौने दो किलोग्राम गेहूं या उसकी कीमत 65 रुपये, खजूर तीन किलोग्राम अथवा उसकी कीमत या किसमिस तीन किलोग्राम अथवा उसकी कीमत ईद की नमाज से पहले गरीबों को देना चाहिए.
अल्लाह ताला इससे रोजे में होने वाली कमियों को पूरी करता है. वहीं इससे गरीबों की भी ईद अच्छी होती है. मौला मस्जिद के इमाम मौलाना जाकिर ने कहा कि इस्लाम मजहब में मगफिरत (मोक्ष) के लिए तकवा (संयम/सत्कर्म) जरूरी है. तकवा के लिए रोजा जरूरी है. रोजा यानी अल्लाह का वास्ता. रोजा यानी मगफिरत का रास्ता. रमजान के मुबारक माह के ग्यारहवें रोजे से मगफिरत का अशरा शुरू हो जाता है. जो बीसवें रोजे तक होता है.
इस दूसरे अशरे को मगफिरत का अशरा (मोक्ष का कालखंड) इसलिए कहा जाता है कि इसमें अल्लाह से मगफिरत के लिए खसुसी दुआ की जाती है. बिना किसी पाप के यानी बुराई से बचते हुए रोजे में अल्लाह की इबादत की जाती है. और माफी मांगते हुए मगफिरत की तलब की जाती है.
यानी इबादत की टहनी पर मगफिरत का फूल है रोजा. बड़ा तेलपा जामा मस्जिद में खिताब करते हुए मौलाना रज्जबुल कादरी ने कहा कि पवित्र कुरान में ज़िक्र है ‘बेशक जो लोग अपने परवर दिगार से बिना देखे डरते हैं.
उनके लिए मगफिरत और अज़्रे-अजीम (महान पुण्य) मुकर्रर है. कुरआन की आयत की रोशनी में ग्यारहवें रोजे की तशरीह की जाए तो आधुनिक अविष्कारों के मद्देनजर कहा जा सकता है कि इबादत के प्लेटफॉर्म पर मगफिरत की ट्रेन के लिए दरअसल ग्यारहवां रोजा सिग्नल है. क्योंकि ग्यारहवें रोजे से ही रमजान माह में मगफिरत का अशरा शुरू होता है. मगफिरत (मोक्ष) की बात हरेक मजहब में कही गई.
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