बिहारराजनीति

बिहार में आचार संहिता लागू: सरकारी प्रचार पर रोक, चुनावी मर्यादा में बंधे मंत्री और अफसर

चुनाव तारीखों की घोषणा के साथ ही आयोग ने खींची आचार संहिता की रेखा

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की औपचारिक घोषणा के साथ ही राज्य में चुनावी माहौल पूरी तरह गर्म हो गया है। चुनाव आयोग ने सोमवार को चुनाव कार्यक्रम का ऐलान कर दिया है। दो चरणों में मतदान होगा — पहले चरण की वोटिंग 6 नवंबर और दूसरे चरण की 11 नवंबर को होगी, जबकि मतगणना 14 नवंबर को की जाएगी। इसके साथ ही राज्य में आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) प्रभावी हो गई है।

चुनाव की घोषणा से पहले ही आयोग विपक्ष के निशाने पर था, खासकर तब जब 30 सितंबर को आयोग ने एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) की अंतिम मतदाता सूची जारी की थी। उस सूची के अनुसार बिहार में कुल 7,41,92,357 मतदाता पंजीकृत हैं। अब चुनाव कार्यक्रम तय होने के बाद राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं, लेकिन सभी दलों और उम्मीदवारों को आदर्श आचार संहिता के नियमों का पालन करना होगा।

 क्या है आदर्श आचार संहिता?

आदर्श आचार संहिता राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के आचरण के लिए बनाए गए उन दिशा-निर्देशों का समूह है जो स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव सुनिश्चित करने के लिए तैयार किए गए हैं। इसे राजनीतिक दलों की सहमति से बनाया गया है और चुनाव आयोग इसके पालन की निगरानी करता है।

संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों का संचालन चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है।

कब से कब तक रहती है लागू?

आदर्श आचार संहिता चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही लागू हो जाती है और यह चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक प्रभावी रहती है।

  • लोकसभा चुनाव के दौरान यह पूरे देश में लागू होती है।
  • विधानसभा चुनाव के दौरान यह सिर्फ संबंधित राज्य में लागू रहती है।

आचार संहिता की प्रमुख विशेषताएं

  • राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को ऐसा कोई आचरण नहीं करना चाहिए जो समाज में धार्मिक, जातीय या भाषायी वैमनस्य फैलाए।
  • सरकार के मंत्री अपने आधिकारिक दौरे को चुनाव प्रचार से नहीं जोड़ सकते, न ही सरकारी कर्मचारियों या संसाधनों का उपयोग प्रचार में कर सकते हैं।
  • केवल प्रधानमंत्री को आधिकारिक और चुनावी दौरे एक साथ करने की आंशिक छूट होती है।

 सरकार और अधिकारियों के लिए नियम

  • चुनाव अवधि में किसी अधिकारी का तबादला या नई तैनाती चुनाव आयोग की अनुमति के बिना नहीं की जा सकती।
  • मंत्री अपने सरकारी वाहन का उपयोग केवल दफ्तर से निवास तक की आधिकारिक यात्रा के लिए कर सकते हैं।
  • सरकारी योजनाओं या विकास कार्यों का नया शिलान्यास या उद्घाटन नहीं किया जा सकता।
  • पहले से जारी परियोजनाओं को जारी रखा जा सकता है, लेकिन नए लाभार्थियों की स्वीकृति या घोषणा पर रोक होगी।

सरकारी प्रचार और विज्ञापनों पर प्रतिबंध

  • चुनाव के दौरान सरकारी खर्चे से किसी भी दल या सरकार की उपलब्धियों का प्रचार नहीं किया जा सकता।
  • होर्डिंग, बैनर, पोस्टर या विज्ञापन जो सरकार की उपलब्धियों को दिखाते हों, उन्हें तुरंत हटाना अनिवार्य है।
  • अखबारों, टीवी और डिजिटल मीडिया पर सरकारी कोष से कोई विज्ञापन जारी नहीं किया जा सकता।

चुनाव प्रचार के लिए दिशा-निर्देश

  • वोट मांगने के लिए धर्म या जाति के नाम पर अपील करना पूरी तरह प्रतिबंधित है।
  • मंदिर, मस्जिद, चर्च या अन्य धार्मिक स्थलों का उपयोग प्रचार के मंच के रूप में नहीं किया जा सकता।
  • किसी पार्टी या उम्मीदवार की निजी जिंदगी पर व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की जा सकती; आलोचना सिर्फ नीतियों और कार्यों तक सीमित रहनी चाहिए।
  • किसी की अनुमति के बिना उसके घर, दुकान या संपत्ति पर बैनर, झंडे या पोस्टर नहीं लगाए जा सकते।
  • प्रचार बंद होने के बाद (मतदान से 48 घंटे पहले) कोई जनसभा, जुलूस या प्रचार प्रसार नहीं किया जा सकता।

 मतदान केंद्र के लिए सख्त नियम

  • मतदान केंद्र से 100 मीटर के दायरे में प्रचार पूरी तरह निषिद्ध है।
  • मतदान केंद्र के पास हथियार लेकर घूमना अपराध है।
  • किसी भी मतदाता को वाहन से लाने या ले जाने की व्यवस्था अपराध मानी जाएगी।

 निष्पक्षता पर आयोग की सख्ती

आयोग ने स्पष्ट किया है कि किसी भी राजनीतिक दल या उम्मीदवार द्वारा भ्रष्ट आचरण, मतदाताओं को लालच देने, डराने-धमकाने या मतदान प्रक्रिया में बाधा डालने जैसी गतिविधियों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।

बिहार में अब चुनावी सरगर्मी अपने चरम पर है। दो चरणों में मतदान और 14 नवंबर को परिणाम आने के साथ, राज्य में राजनीतिक समीकरण बदलने की पूरी संभावना है। लेकिन इस बार हर दल और प्रत्याशी पर आयोग की पैनी नजर रहेगी — ताकि चुनाव न केवल प्रतिस्पर्धी हों, बल्कि पूर्णतः निष्पक्ष और पारदर्शी भी साबित हों।

News Desk

Publisher & Editor-in-Chief

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