प्रवासी और विलुप्त पक्षियों का रैन बसेरा बनेगा मशरक,पटना से पहुंची वन विभाग की टीम ने किया निरीक्षण

छपरा
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छपरा। पर्यावरण को संतुलित रखने में पेड़-पौधों के साथ ही पशु-पक्षियों की भूमिका भी अहम है। लेकिन मनुष्य के अत्यधिक हस्तक्षेप के चलते इन सबकी संख्या कम होती जा रही है। यदि हम जल्द नहीं चेते तो स्थिति भयावह हो सकती है। कीटनाशकों के प्रयोग और लगातार कटते जंगल एवं पक्षियों के बढ़ते शिकार से जहां पक्षियों की संख्या कम होती जा रही हैं, वहीं कुछ प्रजातियां तो विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी हैं।

पर्यावरण को संतुलित रखने में पेड़-पौधों के साथ ही पशु-पक्षियों की भूमिका भी अहम है। लेकिन मनुष्य के अत्यधिक हस्तक्षेप के चलते इन सबकी संख्या कम होती जा रही है। यदि हम जल्द नहीं चेते तो स्थिति भयावह हो सकती है। इसी को लेकर वन विभाग सजग हो गया है इसी को लेकर शनिवार को वन विभाग की तरफ वाइल्ड लाइन की टीम ने मशरक के बहुआरा चंवर पहुंच वहां के वातावरण और पक्षियों के ठहराव और प्रजनन का मुआयना किया। मौके पर वन उप परिसर पदाधिकारी मशरक मलय कुमारी ने बताया कि सारण जिला वन अधिकारी के आदेशानुसार पटना से पहुंची वाइल्ड लाइफ की टीम के साथ बहुआरा चंवर का निरीक्षण किया गया वहीं निरीक्षण के दौरान चवर में वैसे पक्षियों का भी प्रवास पाया गया जो विलुप्त होने के कगार पर है जिसमें लालमुनिया जिसकी मादा प्रजाति पायी गयी। वही और भी विलुप्त हो रही पक्षियों की प्रजाति पायी गयी।

आबादी वाले इलाकों में रहने वाली गौरेया गिद्ध के बाद दूसरी विलुप्त होने वाली पक्षियों के स्थान में हैं जो अक्सर घरों में अस्थाई तौर पर निवास करती हैं यह पक्षी लोगों को अपनी सुरीली आवाज से मंत्र मुग्ध करने के साथ ही घरों और आप-पास में नुकसान पहुंचाने वाले कीट पतंगों को खाकर घरेलू वातावरण को शुद्ध करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सरकार टीम के माध्यम से इलाक़े का सर्वे कर रहीं हैं जिसमें प्रथम स्तर पर जांच में पक्षियों की प्रवास पायी गयी जिसके सबंध में जांच रिपोर्ट जिले को भेजी जाएंगी। यदि सबकुछ ठीक रहा तो इलाक़े को वन विभाग के तरफ से पक्षियों के ठहराव और प्रजनन के लिए पक्षी अभयारण्य बनाया जाएगा।

वहीं वन उप परिसर पदाधिकारी मशरक मलय कुमारी ने कहां कि‌ यदि समय रहते मानव समाज इन पक्षियों के प्रति संवेदनशील नही हुआ तो वह दिन दूर नहीं जो हमारे पर्यावरण रक्षक इतिहास का हिस्सा बन जाएंगे। विलुप्त हो रहे पक्षियों से पर्यावरण का संतुलन और बिगड़ता जा रहा है। पेड़ पौधों पर वह स्वछन्द विचरण करने वाले यह पक्षी अपना स्थान तो सुरक्षित नहीं कर सकते हैं। मानव समाज द्वारा बनाए गए पिंजड़ों में कैद होकर शोपीस बन कर रह गए हैं।