मनोज झा ने किया संसद में ‘ठाकुर का कुआं’ का पाठ, बिहार के राजपूत नेताओं ने खोला मोर्चा

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वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ पत्रकार

डेस्क।राजपूत एक जाति है। कुछ राज्‍यों में उनकी पहचान ठाकुर जाति के रूप में है। फिल्‍मों में ठाकुरों की भूमिका खलनायकी की रही है। बिहार में इस जाति से लोकसभा के सात और विधान सभा में 28 सदस्‍य हैं। वर्तमान में भाजपा के सबसे प्रतिबद्ध वोटर राजपूत हैं। उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍य नाथ और केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी इसी जाति के हैं। बिहार में वर्तमान में ऐसा कोई भी राजपूत नेता नहीं है, जिनकी पहचान जा‍ति के नेता के रूप हो।ठाकुरों को लेकर दर्जनों कहावत प्रचलित हैं। उनमें से एक भी कहावत वीरता के संदर्भ में नहीं है। प्रेमचंद की बहुत लोकप्रिय कहानी है– ‘ठाकुर का कुआं’। इसका नाटकीय मंचन भी खूब हुआ। प्रेमचंद कायस्थ थे। साहित्‍यकार ओमप्रकाश वाल्‍मीकि ने भी एक कविता लिखी है, जिसका केंद्र बिंदु है ठाकुर का प्रभुत्‍व और आधिपत्‍य। ओमप्रकाश वाल्मीकि दलित थे। यह कविता भी गैर-सवर्णों के मंच पर खूब पढ़ी जाती है।

कविता है–

“चूल्‍हा मिट्टी का

मिट्टी तालाब की

तालाब ठाकुर का।

भूख रोटी की

रोटी बाजरे की

बाजरा खेत का

खेत ठाकुर का।
बैल ठाकुर का

हल ठाकुर का

हल की मूठ पर हथेली अपनी

फ़सल ठाकुर की।

कुआं ठाकुर का

पानी ठाकुर का

खेत-खलिहान ठाकुर के

गली-मुहल्‍ले ठाकुर के
फिर अपना क्‍या ?

गांव?

शहर?

देश?”

ओमप्रकाश वाल्‍मीकि की यह कविता मनोज झा ने महिला आरक्षण विधेयक पर हुई बहस में अपने संबोधन के दौरान राज्‍यसभा में पढ़ दी। मनोज मैथिल ब्राह्मण हैं। इस तरह एक ब्राह्मण ने राजपूत के आधिपत्‍य या प्रभुत्‍व से जुड़ी कविता पढ़ दी। उस समय राज्‍यसभा का सामान्‍य माहौल था। जैसे राजनाथ सिंह भाषणों में कविता या शायरी के इस्‍तेमाल करते हैं, उसी तरह मनोज झा ने भी अपनी बात के प्रवाह में एक कविता पढ़ दी।संसद में सांसदों का भाषण विवाह में गीत के समान होता है, जिसको लोग सुनते हैं और जिसके काम का होता है, वह गुनता भी हैं।

लेकिन विवाह के इस गीत पर बिहार के राजपूतों ने तलवार भांजना शुरू कर दिया। बयान ऐसे दिये जा रहे हैं कि जैसे इनका शौर्य लूट लिया गया हो। इसमें सभी पार्टी के राजपूत नेता छाती पीट रहे हैं। मनोज झा के भाषण के बाद भाजपा के एक प्रादेशिक राजपूत प्रवक्‍ता अरविंद कुमार सिंह ने पहली प्रतिक्रिया दी। ठीक उसी अंदाज में जैसे एक ब्राह्मण ने इनका शौर्य लूट लिया हो। इसके बाद सभी पार्टी के नेता और‍ विधायक बयानबाजी में शामिल हो गये। छाती पीटने का चीत्‍कार जीभ खींचने तक पहुंच गया।

इस पूरे प्रकरण को तीन शब्‍दों से आसानी से समझा जा सकता है– ब्राह्मण, राजपूत और वोट। मनोज झा राजद के सांसद हैं और ब्राह्मणों का वोट राजद को नहीं मिलता है। राजपूत भाजपा का कोर वोटर है और उस पर राजद भी निगाह लगाए हुए है। भाजपा प्रवक्‍ता ने राजपूतों की संवेदना को भड़काने के लिए मनोज झा की कविता के माध्‍यम से प्रहार किया और वह निशाने पर लग गया। इसका असर हुआ कि राजद के राजपूत विधायक अपने वोट को बांधे रखने के लिए अपने ही सांसद के खिलाफ खड़े हो गए।

इसके बाद सभी पार्टी के राजपूत नेता मनोज से हटकर ‘झा’ पर अटक गए। बात इतनी आगे बढ़ गयी कि राजपूतों ने ‘मै‍थिल और सांप’ को एक साथ बैठा दिया।

दरअसल, मनोज झा के कविता पाठ से राजपूतों का स्‍वाभिमान आहत नहीं हुआ है, बल्कि राजपूत वोटों में दरार बढ़ने की आशंका बढ़ गयी है। इस बिखराव को लपकने की कोशिश हर पक्ष की ओर से की जा रही है।

राजपूतों का एक बड़ा हिस्‍सा समाजवादी रहा है। बिहार में रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह इसके उदाहरण हैं। समाजवादी खेमे से बड़ी संख्‍या में राजपूत सांसद और विधायक बनते रहे थे। लेकिन भाजपा की शक्ति बढ़ने के बाद राजपूतों का बड़ा हिस्‍सा उसके साथ हो चुका है। वैसे स्थिति में राजद विधायक की बेचैनी और परेशानी को आसानी से समझा जा सकता है।

वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ पत्रकार पटना

 

नोट : यह लेखक के निजी विचार है. लेखक पटना के वरिष्ठ पत्रकार है।