
पटना। राज्य सरकार ने सड़क सुरक्षा को लेकर एक बड़ी पहल की है। ‘मोटरवाहन चालन प्रशिक्षण संस्थान प्रोत्साहन योजना’ के तहत बिहार के 38 में से 37 जिलों में 66 ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल स्थापित करने की योजना पर तेजी से काम किया जा रहा है। अब तक 29 जिलों में 34 स्कूलों की स्थापना की जा चुकी है, जबकि 32 स्कूलों का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है। औरंगाबाद को छोड़कर शेष सभी जिलों में यह योजना सक्रिय रूप से लागू हो रही है।
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सड़क हादसों में कमी लाना है सरकार का उद्देश्य
परिवहन विभाग के अनुसार इस योजना का मुख्य उद्देश्य सड़क हादसों में कमी लाना है। राज्य सरकार मानती है कि वाहन चालकों को उचित, व्यावहारिक और गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण देने से ट्रैफिक नियमों के पालन में सुधार होगा, जिससे दुर्घटनाएं कम होंगी। इसके लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
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प्रत्येक स्कूल को मिल रहा 20 लाख रुपये तक का अनुदान
सरकार द्वारा दिए जा रहे अनुदान में संस्थान को प्रशिक्षण केंद्र खोलने के लिए स्कूल की कुल लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 20 लाख रुपये तक की सहायता दी जा रही है। इसमें भवन निर्माण और ड्राइविंग ट्रैक के लिए 10 लाख (5-5 लाख), उपकरणों की खरीद के लिए 2 लाख, हल्के मोटर वाहनों की खरीद के लिए 4 लाख (दो वाहन), एक चार पहिया वाहन के लिए 2 लाख और संचालन शुरू होने पर अतिरिक्त 2 लाख रुपये का प्रावधान शामिल है।
इस अनुदान से जहां निजी संस्थानों को वित्तीय सहयोग मिल रहा है, वहीं राज्य भर में कुशल ड्राइवरों की नई फौज तैयार हो रही है, जो रोजगार सृजन में सहायक है।
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स्कूल स्थापित करने के लिए तय किए गए हैं मानक
योजना के तहत ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल स्थापित करने के लिए कुछ विशेष मापदंड तय किए गए हैं। स्कूल खोलने के लिए इच्छुक व्यक्ति या संस्था के पास कम से कम दो एकड़ भूमि होनी चाहिए, जो सड़क से जुड़ी हो और कम से कम दस वर्षों की वैध लीज पर हो।
इसके अलावा स्कूल परिसर में निम्नलिखित सुविधाएं अनिवार्य रूप से होनी चाहिए:
- क्लासरूम और स्टाफ रूम
- वर्कशॉप
- पुरुष और महिला प्रशिक्षुओं के लिए अलग-अलग शौचालय
- स्वच्छ पेयजल की सुविधा
- इंटरनेट और सीसीटीवी कैमरे
- बिजली कनेक्शन
- कम से कम 150 मीटर लंबा ड्राइविंग ट्रैक
इसके अतिरिक्त, प्रशिक्षकों की योग्यता भी तय की गई है। ड्राइविंग स्कूलों में हल्के, भारी और खतरनाक सामग्री ढोने वाले वाहनों के चालकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। साथ ही, पहले से कार्यरत चालकों तथा ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वाले चालकों को भी सुधारात्मक प्रशिक्षण देकर नियमों का पालन करने के प्रति जागरूक किया जा रहा है।
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रोजगार और सुरक्षा दोनों का समाधान
इस योजना के क्रियान्वयन से न केवल राज्य में सड़क सुरक्षा को मजबूती मिल रही है, बल्कि बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार और स्वरोजगार के नए अवसर भी मिल रहे हैं। परिवहन विभाग का मानना है कि प्रशिक्षित ड्राइवरों की संख्या बढ़ने से न केवल दुर्घटनाओं में कमी आएगी, बल्कि ड्राइवरों की पेशेवर छवि भी बेहतर होगी।
औरंगाबाद क्यों है अपवाद?
इस पूरी योजना में अब तक केवल औरंगाबाद जिला ऐसा है जहां ड्राइविंग स्कूल की स्थापना नहीं हो सकी है। परिवहन विभाग के अनुसार, यहां भूमि चयन या आवेदन की प्रक्रिया में तकनीकी अड़चनें सामने आई हैं, जिन्हें शीघ्र दूर कर योजना को वहां भी लागू किया जाएगा।
बिहार सरकार की यह पहल सड़क सुरक्षा और युवाओं को प्रशिक्षण एवं रोजगार देने की दिशा में एक सराहनीय कदम है। यदि यह मॉडल सफल रहता है तो अन्य राज्य भी इससे सीख ले सकते हैं। इसके सफल क्रियान्वयन के लिए सरकारी निगरानी और गुणवत्ता नियंत्रण बेहद जरूरी है, ताकि योजना का उद्देश्य पूर्ण रूप से साकार हो सके। |