दिल का दौरा पड़ने पर जान बचाने के लिए कार्डियोप्लमोनरी रिससिटेशन होगा सार्थक सिद्ध: डॉ हिमांशु

छपरा
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छपरा। हार्ट अटैक यानी दिल का दौरा पड़ना आम बात है। किसी भी उम्र के व्यक्ति को हार्ट अटैक आ सकता है। हार्ट अटैक आने पर सबसे पहले क्या करना चाहिए और इससे बचाव के क्या उपाय हैं। इसको लेकर लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य से छपरा शहर के नगर पालिका चौक स्थित धड़कन क्लिनिक में सीपीआर यानी कार्डियोप्लमोनरी रिससिटेशन के बारे में जानकारी दी गई। स्वास्थ्य कर्मियों और मरीजों को कार्डियोप्लमोनरी रिससिटेशन के बारे जानकारी देकर जागरूक किया गया। इस मौके पर हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ हिमांशु कुमार ने बताया कि CPR में बीमार व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने से पहले जीवित रखने के लिए हृदय की मांसपेशियों पर दबाव डालने के लिए एक विशेष तकनीक का उपयोग किया जाता है। कार्डियक अरेस्ट होने पर हृदय मस्तिष्क और फेफड़ों सहित शरीर के बाकी हिस्सों में खून पंप नहीं कर सकता है।

ऐसी स्थिति में इस तकनीक से मरीज की जान बचाई जा सकती है।कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (CPR) एक जीवनरक्षक तकनीक है जो कई आपात स्थितियों में उपयोगी होती है जिसमें किसी की सांस या दिल की धड़कन रुक जाती है। उदाहरण के लिए, जब किसी को दिल का दौरा पड़ता है या वह लगभग डूब जाता है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन सीपीआर की शुरुआत छाती पर ज़ोरदार और तेज़ दबाव से करने की सलाह देता है। केवल हाथों से सीपीआर करने की यह सलाह अप्रशिक्षित दर्शकों और पहले उत्तरदाताओं दोनों पर लागू होती है।उपरोक्त सलाह उन स्थितियों पर लागू होती है जिनमें वयस्कों, बच्चों और शिशुओं को सी.पी.आर. की आवश्यकता होती है, लेकिन नवजात शिशुओं को नहीं। नवजात शिशुओं में 4 सप्ताह तक के बच्चे शामिल होते हैं।

सीपीआर मस्तिष्क और अन्य अंगों में ऑक्सीजन युक्त रक्त के प्रवाह को तब तक बनाए रख सकता है जब तक आपातकालीन चिकित्सा उपचार सामान्य हृदय ताल को बहाल नहीं कर देता। जब हृदय रुक जाता है, तो शरीर को ऑक्सीजन युक्त रक्त नहीं मिल पाता। ऑक्सीजन युक्त रक्त की कमी से कुछ ही मिनटों में मस्तिष्क को नुकसान हो सकता है।

डॉ हिमांशु कुमार ने बताया कि कार्डियक अरेस्ट आने की स्थिति में 3 से 10 मिनट का समय बहुत अहम होता है। एक स्टडी से सामने आया है कि देश में प्रति वर्ष करीब दस लाख लोगों की मौत केवल कार्डियक अरेस्ट के कारण होती है। अगर कोई ट्रेंड व्यक्ति पीड़ित की जान बचाने की कोशिश करता है तो करीब साढ़े तीन लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है।