सारण प्रमंडल का एक ऐसा गांव, जहां बेटियों को दहेज में दी जाती है नाव

Siwan बिहार
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

सीवान। बेटी की शादी में दहेज के रूप में माता-पिता पैसे, गाड़ी जेवर या फर्नीचर जैसी चीजें देते हैं. लेकिन बिहार के सिवान जिले में एक ऐसा गांव हैं, जहां बेटियों को दहेज में नाव दिया जाता है. इसके कारण गुठनी प्रखंड के गुठनी बाजार से 2 किलोमीटर दूर स्थित तीर बलुआ गांव सभी के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है.

सिवान के इस गांव के हर घर में नाव:

 तीर बलुआ गांव किसी अजूबे से कम नहीं है. दरअसल यहां घर-घर नाव है,जिसका इस्तेमाल मछली मारने, मार्केट जाने, पशुओं का चारा लाने और नदी के दूसरे छोर में जाकर खेती करने तक के लिए होता है. इस गांव में लगभग 150 के करीब घर हैं और नाव की संख्या 100 से ज्यादा है. जिले के दूसरे गांवों से तुलना करें तो तीर बलुआ गांव में सबसे अधिक नावों की संख्या है.

दामाद को दहेज में नाव:

ग्रामीणों ने यह भी बताया कि बेटियों की शादी में हमें नाव दहेज के रूप में देना पड़ता है. इसके दो कारण हैं एक गांव पानी से घिरा है दूसरा गांव में ही नाव बनाने की परंपरा है. पुराने जमाने से ही गांव के लोग खुद ही नाव तैयार कर लेते हैं. दो से तीन दिनों में नाव बनकर तैयार हो जाती है.

ग्रामीण खुद बनाते हैं नाव:

वहीं एक बुजुर्ग ग्रामीण ने भी गांव की परेशानियों की पूरी कहानी बतायी. उन्होंने कहा कि हर घर में अपना नाव है. बाजार जाने के लिए पहले नाव का सहारा लिया जाता था लेकिन अब गाड़ी है. हम आज भी नाव पर ही निर्भर करते हैं. दियरा से लकड़ी लाना होता है. सिलेंडर कितना इस्तेमाल करेंगे.

नाव बनाने में 15-20 हजार खर्च‘: 

वहीं एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि गांव में बड़ी संख्या में नाव है. 100 से ज्यादा नाव है. मछली पकड़ने का काम करते हैं. लकड़ी लाकर खाना बनाते हैं. सिलेंडर भरवाने का पैसा नहीं है. हमारे पास कोई खेती का साधन नहीं है. हर साल बाढ़ आती है लेकिन कोई नेता देखने नहीं आता है. नाव बनाने में 15-20 हजार खर्च होता है.