छपरा

सारण के इस विद्यालय के दीवारों में आज भी गूंजती है 23 मासूमों की खामोश चीख़ें, वो दिन जब शिक्षा की थाली से आई मौत

23 मासूम बच्चों की कब्रों के बीच रोज़ लगती है प्रार्थना सभा

छपरा। बिहार के सारण जिले का मशरक प्रखंड, और वहां बसा एक छोटा सा गांव—धर्मसती गंडामन। यह गांव किसी पहचान का मोहताज नहीं। यहां हर ईंट, हर दीवार, हर छत की स्मृति में 16 जुलाई 2013 की वो दोपहर दर्ज है, जब मिड डे मील में जहर मिला और 23 मासूम बच्चों की जिंदगी एक झटके में खत्म हो गई।

आज घटना को 12 साल हो गए, लेकिन स्कूल आज भी खुलता है, बच्चों की प्रार्थना गूंजती है, मिड डे मील बनता है, पर उस दिन की चींख गांव के हर दिल में आज भी जिंदा है।

वो क्लासरूम, जहां अब भी गूंजती हैं खामोश चीखें

सरकारी मध्य विद्यालय गंडामन धर्मसती। वही स्कूल जहां बच्चे पढ़ने आए थे। लेकिन उन्हें न अक्षर मिले, न उजाला, मिला तो बस मौत का निवाला। मिड डे मील के चावल में मिला कीटनाशक, जिसने 23 नन्हे शरीरों को तड़पते हुए मौत के आगोश में सुला दिया।

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कुछ बच्चों को उसी स्कूल परिसर में दफनाया गया, और वहीं अब बने स्मृति स्थल पर हर साल गांववाले श्रद्धा के फूल चढ़ाते हैं। ये कब्रें आज भी स्कूल में मौजूद हैं। स्मरण कराती हैं कि भूख मिटाने की एक सरकारी योजना, कैसे मौत का फंदा बन गई थी।

हर साल लौटता है वो ज़ख्म, जो कभी भरा ही नहीं

इस बार 16 जुलाई की सुबह भी कुछ वैसी ही थी। गांव की हवा भारी थी। शोक-संगीत नहीं था, लेकिन आंखों में नमी थी। श्रद्धांजलि सभा हुई, मोमबत्तियां जलीं, और हर चेहरा उस पल को याद कर सिहर गया। मृत बच्चों की मांओं ने एक बार फिर उनके नाम पुकारे, जो अब कभी लौट कर नहीं आएंगे।

चलता स्कूल, लेकिन ठहरी हुई यादें

ध्यान रहे, हादसे के बाद यह स्कूल बंद नहीं हुआ। शिक्षा का सिलसिला जारी रहा। नई पीढ़ी पढ़ रही है, सीख रही है, बढ़ रही है। मगर हर सुबह की प्रार्थना में, हर खाने की थाली में, एक डर, एक चेतावनी और एक दबी हुई चीख जरूर शामिल होती है।

सरकार ने दी योजनाएं, पर दिलों के घाव अब भी हरे हैं

घटना के बाद सरकार ने राहत के तौर पर आर्थिक मदद, योजनाएं और एक स्मारक देने की घोषणा की। मगर कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जिनकी आंखें आज भी न्याय की बाट जोह रही हैं।
कुछ को मुआवज़ा मिला, पर जिनका बच्चा चला गया, उनके लिए वो सब अधूरा ही रहा।

23 मासूम, जिनके नाम अब सिर्फ पत्थरों पर नहीं, दिलों में खुदे हैं

धर्मसती गंडामन आज सिर्फ एक गांव नहीं, एक प्रतीक है—लापरवाही और जिम्मेदारी के टकराव का। यहां हर बच्चा आज भी पढ़ता है, लेकिन स्कूल के आंगन में बने स्मारक की ओर रोज़ देखता है। शायद यह जानने कि उसे पढ़कर वही गलती नहीं दोहरानी है, जो कभी उसके भाईयों-बहनों की जान ले चुकी है।

News Desk

Publisher & Editor-in-Chief

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