छपरा: छपरा के गोबराही गांव में एक ऐसा अद्वितीय मंदिर बन रहा है, जो एक पति की अपार श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक बन गया है। यह मंदिर किसी ऐतिहासिक ताजमहल की तरह अपनी पत्नी की याद में बनाया जा रहा है। विजय सिंह नामक व्यक्ति अपनी स्वर्गीय पत्नी स्व. रेणु देवी की याद में इस मंदिर का निर्माण करवा रहे हैं, जिसका अनुमानित खर्च ढाई करोड़ रुपये से अधिक है।
पत्नी करती है भगवान शिव की पूजा
स्व. रेणु देवी भगवान शिव के प्रति अपनी विशेष श्रद्धा रखते हुए उनके पूजा-अर्चना करती थीं। शिवरात्रि के दिन ही उनका निधन हो गया, और इस दुखद घटना के बाद विजय सिंह ने पत्नी के नाम पर एक छोटा सा मंदिर बनाने का संकल्प लिया था। इस संकल्प के साथ शुरुआत में छोटे स्तर पर मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हुआ, लेकिन जब लोगों का सहयोग बढ़ा, तो यह योजना एक भव्य और विशाल मंदिर में बदल गई। अब यह मंदिर ‘शिव शक्ति धाम’ के नाम से जाना जाएगा।
पर्यटकों के लिए एक प्रमुख स्थल बन जाएगा
इस मंदिर का निर्माण कार्य अब एक विशाल स्वरूप ले चुका है। इसके निर्माण में मार्बल और ग्रेनाइट की उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग किया जा रहा है। इस मंदिर को बनाने वाले कारीगर महाराष्ट्र से आए हुए हैं, जो अपने हाथों से मंदिर को एक आकर्षक और भव्य आकार दे रहे हैं। विजय सिंह ने बताया कि मंदिर के निर्माण से यह स्थान आने वाले दिनों में पर्यटकों के लिए एक प्रमुख स्थल बन जाएगा, और लोग यहां आकर शिव की पूजा-अर्चना कर सकेंगे।
मंदिर के साथ-साथ यहां एक वेद विद्यालय भी बनाया जा रहा है, जहां छोटे-छोटे बच्चे शिक्षा प्राप्त करेंगे। इस मंदिर के निर्माण से इलाके में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। आसपास के लोग मंदिर निर्माण कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं, और स्थानीय व्यापारियों के लिए भी यह एक सुनहरा अवसर साबित होगा।
विजय सिंह ने कहा कि यह मंदिर उनकी पत्नी के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है, और वह चाहते हैं कि यह स्थान न केवल धार्मिक मान्यता का केंद्र बने, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर भी बने। उनका मानना है कि यह मंदिर क्षेत्र के लोगों के लिए न केवल धार्मिक बल्कि रोजगार और विकास के नए अवसर भी प्रदान करेगा।
इस परियोजना का आर्थिक मूल्य बढ़कर ढाई करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है, और इसे समय रहते पूरा करने के लिए स्थानीय लोग और सहयोगी संस्थाएं मिलकर काम कर रही हैं। विजय सिंह का यह प्रयास यह दिखाता है कि प्यार और श्रद्धा के प्रतीक केवल शब्दों तक सीमित नहीं होते, बल्कि यह जीवनभर के प्रयासों में भी बदल सकते हैं।
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