• फाइलेरिया से बचाव के लिए दवा सेवन के प्रति करेंगे प्रेरित
• पेशेंट सपोर्ट नेटवर्क के सदस्यों और सहयोगी संस्था के प्रतिनिधियों ने की बैठक
• एमडीए दवा सेवन कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सामूहिक सहभागिता जरूरी
सीवान। फाइलेरिया उन्मूलन के लिए स्वास्थ्य विभाग के जिले में दवा सेवन कार्यक्रम चलाया जाना है। इसको सफल बनाने के लिए सामुदायिक सहभागिता को सुनिश्चित करने पर विशेष बल दिया जा रहा है। इसी कड़ी में बुधवार को सीवान जिले के भगवानपुर प्रखंड के बड़का गांव में फाइलेरिया पेशेंट सपोर्ट नेटवर्क के सदस्यों और स्वास्थ्य विभाग के सहयोगी संस्था के प्रतिनिधियों के द्वारा राशन डीलरों के साथ बैठक की गयी।
बैठक में फाइलेरिया से बचाव के लिए चलाये जाने वाले दवा सेवन कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए चर्चा की गयी। राशन डीलरों से अपील की गयी कि राशन वितरण के दौरान जितने भी लोग आते है उन्हें फाइलेरिया से बचाव के लिए दवा सेवन के लिए प्रेरित करना है। गर्भवती महिला और दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को छोड़कर सभी लोगों को दवा खाना है। ताकि हमारे समाज-गांव से फाइलेरिया बिमारी को मिटाया जा सके। दवा का सेवन करना हमारी आने वाली पीढ़ी की सुरक्षा के लिए अति आवश्यक है।
इस दौरान राशन डीलर फजले रहमान, इंद्रदेव राम, वार्ड सदस्य जीतू कुमार,जुलेखा खातून, अफशाना प्रवीण, मो. आशिक, राजन यादव, इरफान अंसारी, ब्रजकिशोर प्रसाद शामिल थे। मीटिंग में पीसीआई के आरएमसी जुलेखा फातमा, सीफार के जिला समन्वयक विनोद श्रीवास्तव, प्रखंड समन्वयक सत्येंद्र प्रसाद तथा फाइलेरिया पेशेंट सपोर्ट नेटवर्क के सदस्य जगन महतो और सुनिता देवी ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निवर्हन किया।
मानसिक स्थिति पर भी पड़ता है बुरा प्रभाव :
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. एमआर रंजन ने बताया कि फाइलेरिया बीमारी से संबंधित स्पष्ट कोई लक्षण नहीं होता है। बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्याएं हो जाती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाइड्रोसील (अंडकोष में सूजन) और भी कई अन्य तरह से फाइलेरिया के लक्षण देखने व सुनने को मिलते हैं। इस बीमारी में सबसे पहले हाथ और पांव दोनों में हाथी के पांव जैसी सूजन आ जाती है। कई सालों तक इसके लक्षण नजर नहीं आते हैं। फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बना देती है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
हमारी आने वाली पीढ़ी सुरक्षित रहे, इसके लिए जागरूकता जरूरी:
फाइलेरिया पेशेंट सपोर्ट नेटवर्क की सदस्य सुनिता देवी ने बताया कि जान-अनजाने में न जाने कब मुझे यह गंभीर बिमारी हो गयी। फाइलेरिया बिमारी से शरीरिक पीड़ा होती है बल्कि समाजिक और मानसिक स्तर पर भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हम सभी नेटवर्क सदस्यों ने यह संकल्प लिया है कि हमारी पीड़ा को किसी और को नहीं सहना पड़े इसके लिए हर किसी को जागरूक करेंगे। जागरूकता से इस बिमारी पर काफी हद तक बचाव हो सकता है।
बढ़ जाती है शारीरिक अपंगता:
भीबीडीसी राजेश कुमार ने बताया कि बीमारी बढ़ने के साथ-साथ शारीरिक अपंगता बढ़ती चली जाती है। इसी कारण इसे निग्लेक्टेड ट्रापिकल डिजीज की श्रेणी में शामिल किया गया है। दिव्यांगता बढ़ने के साथ ही उक्त व्यक्ति कामकाज में पूरी तरह से अक्षम हो जाता है। नौकरी पेशा या व्यवसाय से जुड़े व्यक्ति के अपंग होने की स्थिति में परिवार पर इसका बुरा असर पड़ता है। लगातार पांच वर्षो तक वर्ष में एक बार दवा का सेवन करने मात्र से बीमार व्यक्ति इस बीमारी से सुरक्षित रह सकता है। दवा खा चुके व्यक्तियों में अगर फाइलेरिया के माइक्रो फाइलेटी होते हैं तो वह निष्क्रिय हो जाता हैं। किसी अन्य के संक्रमित होने की आशंका नहीं रह जाती है।
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