• टीबी से जीती लड़ाई , अब टीबी उन्मूलन में सहयोग का लिया संकल्प
• सामुदायिक जागरूकता से टीबी उन्मूलन की राह को कर रहे हैं आसान
• नियमित दवा सेवन से टीबी को दी मात
छपरा,16 नवंबर । जब खुद पर टीबी जैसी बीमारी की मार पड़ी तो जीवन में संघर्ष समझ में आया। कई लोगों ने मदद की तो कुछ लोगों ने टीबी की बीमारी के नाम पर मदद करने से मुंह मोड़ लिया। आखिरकार दृढ़ इच्छाशक्ति और सकारात्मक सोच की वजह से वह इस बीमारी से अब पूरी तरह से उबर गए। साथ ही संकल्प लिया कि इस बीमारी से पीड़ित दूसरे मरीजों का मनोबल बढ़ाएंगे। उन्हें संबल देंगे। हम बात कर रहें सारण जिले के मढौरा प्रखंड के सलिमापुर गांव के 30 वर्षीय युवक राजू रंजन की। जिन्हें वर्ष 2018 में टीबी बीमारी हो गयी । खांसी-बुखार, सांस लेने में तकलीफ और अन्य शरीरिक पीड़ा सहन करना पड़ा। तब उन्होंने सरकारी अस्पताल की ओर अपना कदम बढ़ाया जहां पर संपूर्ण इलाज किया गया और सात माह के नियमित दवा सेवन से वह पूरी तरह से ठीक हो गये। इस दौरान उन्हें निक्षय पोषण योजना के तहत हर माह 500 रुपये भी विभाग के द्वारा दिया गया।
अब चैंपियन बनकर कर रहें जागरूक:
राजू रंजन बताते हैं कि जब उन्हें टीबी था तो कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, शरीरिक पीड़ा के साथ-साथ मानसिक समस्या का समाना करना पड़ा। बीमारी होने के कारण आस-पास के लोगों ने भेदभाव भी किया तो कइयों ने दूरी बना ली। लेकिन इन सब बातों के बावजूद वे अपने दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत टीबी को मात देकर आज स्वस्थ जीवन हीं नहीं जी रहे बल्कि दूसरे टीबी के मरीजों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर हिम्मत बढ़ा रहे हैं । वे गांव में सामुदायिक बैठक कर लोगों को टीबी से बचाव तथा उपचार के बारे में जानकारी देकर जागरूक करते हैं । जब उन्होंने टीबी से लड़ाई जीत ली तो तय कर लिया कि अब वह टीबी से जूझ रहे लोगों का इलाज कराकर उन्हें नया जीवन देने का काम करेंगे। वे स्कूलों में जाकर कभी बच्चों को टीबी से बचाव की जानकारी देते हैं तो, कभी गांवों में जाकर महिलाओं को जागरूक करते हैं । ताकि टीबी मुक्त समाज की परिकल्पना को साकार किया जा सके।
टीबी उन्मूलन को गति देने का लिया संकल्प:
राजू रंजन जब पूरी तरह से ठीक हो गये तो स्वास्थ्य विभाग के द्वारा उन्हें टीबी चैंपियन का दर्जा दिया गया। राजू रंजन ने बताया कि विभाग का लक्ष्य है कि 2025 तक टीबी उन्मूलन किया जाये। मैने भी यह संकल्प लिया है कि जब तक हमारा गांव- समाज और देश टीबी मुक्त नहीं हो जाता है, तब तक अपने कर्तव्यों का निवर्हन करते रहें। राजू का कहना है, ‘टीबी की बीमारी से वजन कम हो जाता और रंग-रूप भी बदल जाता है। इससे हम असहज महसूस करते हैं कि लोग क्या कहेंगे? मुझे लगता है दुनिया का सबसे बड़ा रोग है ‘लोग क्या कहेंगे’। पहले इससे छुटकारा पाना होगा। ‘बीमारी में अपनों की भूमिका अहम होती है। यह वह समय होता है, जब आपको दवा के साथ अपनों के साथ की भी बेहद जरूरत होती है। मेरे आस-पास के कुछ लोगों ने भेदभाव की दृष्टि से देखा, लेकिन परिवार के लोगों ने मेरा साथ दिया और हौसला बढाया कि मैं ठीक हो जाऊंगा और मैं ठीक हो भी गया। मैंने चिकित्सक की सलाह पर अपने खाने का बर्तन अलग रखा और अपने आप को भी परिवार से थोड़ा अलग रखा ताकि मेरे परिवार के किसी सदस्य को यह बीमारी नहीं हो।
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