छपरा

निजी अस्पताल या जांच घरों में आरडीटी किट जांच से डेंगू रोग सत्यापित नहीं

• निजी अस्पतालों में डेंगू के लक्षण वाले मरीज के चिह्नित होने पर सिविल सर्जन को देनी होगी सूचना
• डेंगू की आधिकारिक रूप से जांच की प्रक्रिया केवल एलिसा एनएस वन एवं आईजीएम किट से करने का निर्देश है
• समाज में अनावश्यक भय नहीं फैलाया जाये

छपरा,12 अक्टूबर । निजी जांच घर या अस्पतालों में डेंगू की जांच रैपिड डायग्नोस्टिक किट से होने के बाद एनएस एक घनात्मक परिणाम आने पर उसे डेंगू मरीज घोषित कर दिया जाता है। वस्तुतः ऐसा नहीं है। स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि रैपिड डायग्नोस्टिक किट जांच से लक्षण वाले मरीज चिह्नित किये जा सकते हैं किन्तु यह जांच डेंगू रोग को संपुष्ट नहीं कर सकता है। इसको देखते हुए विभाग ने डेंगू की जांच सबंधी आवश्यक दिशा निर्देश दिए हैं । इसके तहत सभी निजी अस्पताल व जांच घरों को डेंगू के मरीज़ चिह्नित होने पर सीएस को जानकारी देनी होगी ।

साथ ही जांच को लेकर इस्तेमाल किट से भी अवगत कराया जा सकता है, ताकि डेंगू के मरीज़ पाए जाने पर इसको रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाया जा सके। अपर निदेशक सह वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ विनय कुमार शर्मा ने सिविल सर्जन को डेंगू की जांच ज़िले के निजी अस्पताल एवं जांच घरों में कराने से संबंधित दिशा-निर्देश दिया है। जारी पत्र में बताया गया है कि निजी अस्पतालों एवं जांच घरों में डेंगू की जांच रैपिड डायग्नोस्टिक किट (आरडीटी किट) से करने के बाद परिणाम आते ही उसे डेंगू मरीज घोषित कर दिया जाता है, जबकि भारत सरकार द्वारा डेंगू की आधिकारिक रूप से जांच की प्रक्रिया केवल एलिसा एनएस वन एवं आईजीएम किट से करने का निर्देश है। इसका अनुपालन किया जाए।

डेंगू से बचाव के लिए शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनना ज्यादा बेहतर:

डीएमओ डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने बताया कि वेक्टर जनित रोगों में वे सभी रोग आ जाते हैं जो मच्छर, मक्खी या कीट के काटने से होते हैं, जैसे: डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, स्क्रब टायफस या लेप्टोंस्पायरोसिस आदि। मलेरिया एवं डेंगू या अन्य वेक्टर जनित रोगों से बचने के लिए दिन में भी सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल करना चाहिए। मच्छर भगाने वाली क्रीम या दवा का प्रयोग दिन में भी कर सकते हैं। पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनना ज्यादा बेहतर है। घर के सभी कमरों की सफ़ाई के साथ ही टूटे-फूटे बर्तनों, कूलर, एसी, फ्रिज में पानी को स्थिर नहीं होने देना चाहिए। गमला, फूलदान का पानी एक दिन के अंतराल पर बदलना जरूरी है।

जलजमाव के कारण बढ़ता है मच्छरों का प्रकोप:

बरसात के मौसम में जलजमाव के कारण मच्छरों का प्रकोप काफ़ी बढ़ जाता है। इस कारण मलेरिया और डेंगू के मरीजों की संख्या बढ़ने की संभावना प्रबल हो जाती है.। स्वास्थ्य विभाग द्वारा ज़िले में मच्छरों से बचाव करने एवं सुरक्षित रहने के लिए मीडिया एवं सोशल मीडिया साइट्स के माध्यम से जागरूकता फैलाई जा रही है। मच्छरों से होने वाली बीमारियों में मलेरिया, फाइलेरिया, डेंगू, जापानी इन्सेफेलाइटिस, जीका वायरस, चिकनगुनिया आदि प्रमुख हैं। वहीं मच्छरों के काटने से सबसे अधिक मामले मलेरिया और डेंगू के ही आते हैं। घर के साथ-साथ सार्वजनिक स्थलों पर सतर्कता बरतना जरूरी है। वहीं मॉल एवं दुकान चलाने वाले लोग भी खाली जगहों पर रखे डिब्बे और कार्टन में पानी जमा नहीं होने दें।

इन बातों का रखें ध्यान:

• घर के आस-पास साफ पानी जमा नहीं होने दें ।
• जमे हुए पानी में मिट्टी का तेल अथवा जले हुए मोबिल का छिड़काव कर दें ।
• सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें।
• फुल बांह का कपड़ा पहनें ।

News Desk

Publisher & Editor-in-Chief

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