आज के परिवेश में छठ पर्व की सार्थकता

छपरा बिहार
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सारण एसपी डाक्टर कुमार आशीष की कलम से …..

रोजी- रोटी या बेहतर परिवेश की आशा में चाहे हम अपनी जननी-जन्मभूमि से कितना भी दूर हो जाये , हम को जीने की ताकत, अपनी कर्मभूमि में कर्मपथ पर टिके रहने की जिजीविषा उस मिट्टी , उन जड़ो से ही मिलती हैं जहाँ हमने अपना बचपन गुजारा होता है । बचपन के संस्कार ही मनुष्य के जीवन भर की आदतें बन जाती हैं और बचपन के त्योहार ही उसके जीवन भर की सौगातें । यहीं कारण है कि साल में जब जब ये त्योहार आते हैं , तो फिर इंसान चाहे दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हो, उसे अपने घर की याद और घर जाने की इच्छा होने लगती है ।

लेकिन जहाँ तक छठ की बात है तो ये सिर्फ पर्व नहीं, ये महापर्व है । आस्था का महापर्व । बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के लोगो के लिए सबसे बड़ा पर्व । फिर चाहे वो दिल्ली एनसीआर और सूरत में साल भर खटने वाला मजदूर हो या बंगलूर के किसी ऑफिस में काम करने वाला सॉफ्टवेयर इंजीनियर, कैलिफ़ोर्निया में बैठा हाई एर्निंग इंटरप्रेन्योर हो या नासा में बैठा वैज्ञानिक–सबके मन में ये इच्छा होती है कि छठ में तो घर जाना ही है । आखिर क्या है ये छठ । क्यों है ये इतना महत्वपूर्ण । न हीं कभी करवा चौथ की तरह किसी बॉलीवुड फिल्म में इसे दिखाया गया है, न ही मीडिया में इसके बारे में चर्चा होती है । ना ही इसमें कोई बड़ा आयोजन होता है ना ही बहुत ज्यादा ताम झाम के साथ कोई जुलूस निकाला जाता है । न हीं इसकी कोई व्रतकथा की किताब होती है ना ही किसी प्रसिद्ध ऐतिहासिक या धार्मिक किताब में इसका विस्तृत विवरण है । लेकिन इन सब के बावजूद भी हर बिहारी के लिए भावनात्मक आलम्ब और उसकी पहचान है ये छठ । आखिर क्या विशेष है इस पर्व में ? क्या है ये छठ ? आइये थोड़ी कोशिश करते हैं इसे समझने की , शायद हमें कुछ विशेष बाते समझ मे आ जाये ।

वास्तव में छठ दिखाता है मनुष्य की कृतज्ञता की भावना को । ये दिखाता है कि किसी के द्वारा हम पर किया गया उपकार हम नहीं भूलते । हम इसी लिए सूर्य को अर्घ्य देते हैं कि हे सूर्यदेव आप हमें जीवनदायिनी प्रकाश देते हैं । आपके प्रकाश और ऊष्मा से ही हमारी पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व है। इसलिए वर्ष में एक दिन ही सही , हम आपका पूजन करते हैं । आपको अर्घ्य देते हैं और आपके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं ।

इसके अलावा छठ पर्व इस लिए भी महान पर्व, एक महापर्व है कि इसमें कोई पुरोहित और कोई यजमान नहीं होता । सभी बस व्रती ही होते हैं , बस छठ-व्रती । समानता का ऐसा शंखनाद कोई और पर्व करता हो , मुझे तो नहीं पता । आपको है जानकारी तो बताइये । यहीं कारण है कि छठ के घाट पर सब एक साथ अर्घ्य देते है । ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलेगा की ये पहले अर्घ्य देंगे और वो बाद में ।

छठ व्रत की एक बड़ी खासियत ये है कि प्रकृति पूजन के साथ साथ ये महापर्व सबको अपने आप में समाहित करता है। दउरा और सूप बनाने वाले लोगो को भी छठ महत्व देता है । हमे याद दिलाता है कि ये लोग भी सामाजिक व्यवस्था का अभिन्न और महत्वपूर्ण अंग है । और मनुष्य ही क्यों , गागर नींबू और सुथनी जैसे परित्यक्त फलों को भी छठ महत्व देता है । छठ व्रत में अंगूर , अनार और कीवी , स्ट्राबेरी जैसे महंगे और आम आदमी से दूर रहने वाले फलों की कोई जरूरत नहीं । घर के आंगन में उग गए निम्बू , आंवला और अमरूद से ही छठ मैया की पूजा हो जाएगी।

पूर्ण शुचिता का ध्यान रखना अत्यावश्यक होता है. इसके अलावा आप अमीर हों या गरीब , अगर आपको व्रत करना है तो आपको अपने हाथ से अपना प्रसाद बनाना होगा । आप को खुद अपनी रसोई साफ करनी होगी , खुद अपना गेहुँ धोकर सुखाना होगा और खुद अपने से प्रसाद का ठेकुआ बनाना होगा । भले ही आप मंगवा सकते हों बाजार से हजारों की मिठाइयां , छठ में आपको अपने हाथ का ठेकुआ ही चढ़ाना होगा ।

लेकिन छठ सिर्फ इतना ही नहीं है । इसके अलावा भी बहुत कुछ है । ये एक धार्मिक आयोजन नहीं, एक सामाजिक जरुरत है। बिहारी डायस्पोरा जो आज एक बहुआयामी और सशक्त समुदाय के रूप में उभर चुका है, जिसके लोग संसार के कोने-कोने में फैलें हुए हैं. जिनकी पहचान – बिहारी अस्मिता छठ से जुडी हुई है. इसके मधुर कर्णप्रिय लोक गीतों से- शारदा सिन्हा की सुरीली आवाज़ से जुडी हुई है, ये लोकगीत हमें बिहार की मिटटी की याद दिलाते हैं, घर के सभी सदस्यों की उपस्थिति में एक परिवार- समाज में होने का अहसास दिलाते हैं. ये आवश्यक है हर उस आदमी के लिए ,जो रोजी रोटी की तलाश में घर से हजारों किलोमीटर दूर पसीने बहा रहा होता है और सोचता है कि छठ में घर जाएंगे- छह महीने पहले ऑफिस में छुट्टी का आवेदन देता है, चार- तीन महीने पहले से रेल के टिकट का रिजर्वेशन करवाता है। ये आस है हर उस माँ-बाप के लिए, जिसे अपने बेटों-बेटियों को देखे महीनों हो जाते हैं और वो इस उम्मीद में रहती है कि छठ में तो बेटा घर आएगा ही, इसी आस में घर-द्वार की रंगाई-पुताई-सफाई भी करवाते हैं । ये छठ विश्वास है हमारी नई पीढ़ी के उन बच्चों के लिए, जो शहर के एकाकी अपार्टमेंट में जीते हैं और जिन्होंने नदी और पोखर को सिर्फ किताबों और टीवी में देखा है । जल ही जीवन है, जल है तो कल है – ये पर्व हमें सदियों से सिखा रखा है. इस पर्व की आवश्यकता साधना और भरोसे की उस परम्परा को जिन्दा रखने के लिए भी है जोस्त्री-पुरुष में समानता की वकालत करता है। छठ ये इंगित करता है कि बिना पंडित- पुरोहित भी पूजा हो सकती है। ये एकलौता अनुष्ठान है जिसमें सिर्फ उगते सूरज को नहीं, बल्कि डूबते सूरज को भी नमन किया जाता है। ये छठ अनिवार्य है आपके लिए-मेरे लिए -हम सबके लिए, जो इसी छठ के बहाने घाट पर गांव भर के लोगो से मिलकर प्रणाम-पाती और हालचाल तो कर लेते हैं । सामाजिक तानेबाने और रिश्तों को जीवित रखने के लिए ये छठ आवश्यक है और बहुत आनंददायक है ।

कौन हैं डॉ कुमार आशीष**
डॉ कुमार आशीष भारतीय पुलिस सेवा के 2012 बैच के बिहार कैडर के अधिकारी हैं और वो मधेपुरा, नालंदा, किशनगंज, मोतिहारी तथा रेल मुजफ्फरपुर जिले में एसपी के रूप में अपनी सेवा दे चुके हैं. वर्तमान में सारण, छपरा जिले के एसपी के रूप में जनता के लिए अहर्निश कार्यरत हैं. हाल में ही, भारत में नए अपराधिक कानून BNS के लागू होने के पश्चात, इनके द्वारा सारण के रसूलपुर थानान्तर्गत तिहरे हत्याकांड का त्वरित अनुसन्धान, अनुश्रवन और माननीय न्यायालय द्वारा स्पीडी ट्रायल के माध्यम से सभी आरोपियों को सज़ा दिलवाई गयी, जो पूरे देश में BNS कानून के तहत पहली सजा है. श्री आशीष सामुदायिक पुलिसिंग के विभिन्न सफल प्रयोगों के लिए बिहार सहित पूरे देश में जाने जाते हैं. उनके द्वारा शुरू किये गए कई प्रोग्राम (यथा, आवाज़ दो, कॉफ़ी विथ एसपी, पिंक-पेट्रोलिंग, हॉक-मोबाइल पुलिसिंग, थाना-दिवस, मिशन-वस्त्रदान, पर्यटक-मित्र पुलिसिंग योजना आदि) आमलोगों के बीच काफी लोकप्रिय रहे हैं और अपराध नियंत्रण में काफी कारगर भी सिद्ध हुए हैं. जन. जनता के बीच वे जनता के एसपी के रुप में जाने जाते हैं, उनके प्रयासों से पुलिस और पब्लिक के बीच की खाई निरंतर कम हुई है. इस वर्ष के विश्वव्यापी कोरोना महामारी काल में उनके नेतृत्व में किशनगंज पुलिस ने हज़ारों मजबूरों तक भोजन-पानी-दवाई-रक्तदान इत्यादि से मानवता की रक्षा में बढ़-चढ़ कर भाग लिया, जिसकी लोगों ने भूरी-भूरी प्रशंसा की है. वर्ष 2020 में उन्हें एक सामूहिक बलात्कार के मामले के त्वरित अनुसन्धान एवं स्पीडी ट्रायल चलवा कर 07 दोषियों को आजीवन कारावास दिलवाने के लिए देश का प्रतिष्ठित “केन्द्रीय गृह-मंत्री का अनुसन्धान पदक (गुणवत्तापूर्ण अनुसन्धान के लिए) से नवाज़ा गया. ऐसा सम्मान पाने वाले बिहार के पहले आईपीएस अधिकारी होने का भी गौरव उन्हें प्राप्त है. साथ ही मुंबई स्थित “गवर्नेंस नाउ” संस्थान द्वारा उन्हें उनके नवाचार “कॉफ़ी विथ एसपी” प्रोजेक्ट के लिए इंडिया पुलिस अवार्ड से सम्मानित किया गया है. फेम इंडिया पत्रिका द्वारा उन्हें पूरे देश के 50 बेहतरीन आईपीएस अधिकारीयों में “विलक्षण” श्रेणी का माना गया है. हाल में ही उनका शोधपरक आलेख सीबीआई के प्रीमियर जर्नल में प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने वर्तमान समय में डाटा गवर्नेंस की पुलिसिंग के बढती जरुरत पर गहन प्रकाश डाला है. उन्होंने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से फ्रेंच भाषा में स्नातक, स्नातोकोत्तर तथा पीएचडी भी किया है. पुलिसिंग के साथ पठन-पाठन और लेखन में भी उनकी व्यापक रूचि रही है और अबतक विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर उनके कई दर्जन लेख विभिन्न प्रतिष्ठित जगहों से प्रकाशित हो चुके हैं. डॉ कुमार आशीष बिहार के ही जमुई जिले के सिकंदरा गाँव के निवासी है और पिछले साल बिहार के मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार द्वारा शराबबंदी को व्यापक तरीके से लागु करने और जन जागरूकता अभियान के माध्यम से लोगों को शराब और नशा छोड़ने की अविरल पहल करने के लिए “उत्पाद पदक” से सम्मानित किये गए हैं.