JP University: परीक्षा में शामिल छात्र को दिखाया अनुपस्थित, 5 साल बाद मिला न्याय, अब यूनिवर्सिटी देगा 1 लाख रूपये
करियर से खिलवाड़ पर अदालत ने ठोका ₹1 लाख जुर्माना

मामले की पृष्ठभूमि
मांझी थाना क्षेत्र के फुलवरिया निवासी लक्ष्मी साहनी, सुधा देवी डिग्री महाविद्यालय, ताजपुर का इतिहास प्रतिष्ठा (2013-16) सत्र का छात्र था। वर्ष 2014 में उसने प्रथम खंड (पार्ट वन) की परीक्षा दी थी, जिसमें हिंदी (50 अंक) और अंग्रेजी (50 अंक) दोनों विषय शामिल थे। छात्र का दावा है कि उसने हिंदी की परीक्षा दी थी, इसके बावजूद विश्वविद्यालय ने उसे हिंदी विषय में अनुपस्थित दिखाया। नतीजतन उसका परिणाम “प्रमोट” कर दिया गया।
इसके बाद साहनी ने पार्ट-2 की परीक्षा दी और परिणाम भी प्राप्त किया, लेकिन विश्वविद्यालय ने उसके पार्ट-1 परिणाम में त्रुटि को सुधारने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। छात्र द्वारा कई बार प्रमाण एवं अटेंडेंस शीट उपलब्ध कराने के बावजूद सुधार नहीं किया गया। इस कारण उसे पार्ट-3 की परीक्षा देने से वंचित होना पड़ा।
न्यायालय की कार्यवाही
छात्र ने न्याय की गुहार लगाते हुए वर्ष 2019 में स्थायी लोक अदालत, छपरा में मुकदमा पूर्व विवाद (संख्या 27/19) दर्ज कराया। अदालत ने विश्वविद्यालय को नोटिस भेजा, लेकिन कोई अधिकारी उपस्थित नहीं हुआ। बाद में अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति नहीं रहने के कारण अदालत लगभग पाँच वर्षों तक निष्क्रिय रही। पुनः अदालत के संचालन शुरू होने के बाद मामले की सुनवाई हुई।
सुनवाई के दौरान विश्वविद्यालय के कर्मचारी अदालत में उपस्थित हुए और छात्र का पार्ट-1 का सुधारित परिणाम भी प्रस्तुत किया। हालांकि, अदालत ने विश्वविद्यालय की इस गंभीर लापरवाही पर कड़ा रुख अपनाया और परीक्षा नियंत्रक को जिम्मेदार मानते हुए ₹1 लाख का जुर्माना अदा करने का आदेश सुनाया।
अदालत का सख्त संदेश
अध्यक्ष बृजेश कुमार मालवीय और पीठ सदस्य मुस्तरी खातून ने कहा कि विश्वविद्यालय की इस लापरवाही से छात्र का शैक्षणिक करियर प्रभावित हुआ। ऐसे मामलों में संस्थानों को समय पर सुधारात्मक कदम उठाना चाहिए ताकि विद्यार्थियों का भविष्य बर्बाद न हो।
छात्रों के लिए मिसाल
यह फैसला उन छात्रों के लिए भी एक मिसाल है, जिन्हें शैक्षणिक संस्थानों की त्रुटियों या लापरवाहियों का सामना करना पड़ता है। अदालत का यह आदेश शिक्षा संस्थानों को यह संदेश देता है कि विद्यार्थियों की उपेक्षा और निष्क्रियता अब दंडनीय होगी।
स्थायी लोक अदालत का यह निर्णय विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए चेतावनी साबित हो सकता है और छात्रों के अधिकारों को सशक्त करने में अहम भूमिका निभाएगा।