छपरा। पुरुषों में अभी भी मिथक है कि नसबंदी से वो कमजोर हो जाएंगे। मर्दानगी खत्म हो जायेगी। इन तमाम भ्रांतियों और मिथकों को दरकिनार कर सारण जिले में 30 पुरूषों ने परिवार नियोजन कार्यक्रम में अपनी सहभागिता को सुनिश्चित कराते हुए सफल नसबंदी करायी है। दरअसल जिले में स्वास्थ्य विभाग के द्वारा परिवार कल्याण कार्यक्रम के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से 17 से 30 सितंबर तक मिशन परिवार विकास अभियान चलाया गया था। परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से चलाए गए मिशन परिवार विकास अभियान के तहत सारण जिले में 30 पुरुषों ने नसबंदी कराने का साहस दिखाया है।
इस पहल ने उन मिथकों को दरकिनार किया है जो पुरुषों में नसबंदी के प्रति संकोच और भ्रांतियों का कारण बनते हैं। इस दौरान सबसे अधिक मांझी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पुरूषों का नसबंदी हुआ है। मांझी में 9 और छपरा सदर अस्पताल में 5, एकमा में 4 इसी तरह से पूरे जिले में कुल 30 पुरूषों का नसबंदी किया गया है। इस अभियान ने सारण जिले में नसबंदी को लेकर जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वास्थ्य विभाग की कोशिश है कि भविष्य में और अधिक पुरुष इस दिशा में कदम बढ़ाएं और परिवार नियोजन में सहयोग दें।
पुरुष नसबंदी से ना ही शारीरिक कमजोरी होती है और ना ही पुरुषत्व का क्षय होता है:
जिला स्वास्थ्य समिति के डीसीएम सह परिवार नियोजन के नोडल पदाधिकारी ब्रजेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि पुरुष नसबंदी के बाद किसी भी तरह की शारीरिक या यौन कमजोरी नहीं आती है। यह पूरी तरह सुरक्षित और आसान है। लेकिन अधिकांश पुरुष- अभी भी इसे अपनाने में हिचक रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कहीं ना कहीं समुदाय में अभी भी पुरुष नसबंदी से संबंधित जानकारी का अभाव है। उन्होंने बताया कि नसबंदी के प्रति पुरुषों की उदासीनता की सबसे बड़ी वजह इससे जुड़ी भ्रांतियां हैं। लेकिन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन, सेंटर फार डिजिज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन जैसे आधिकारिक एजेंसियों के सर्वे और शोध इन अफवाहों और मिथकों का पूरी तरह खंडन करते हैं। उनका कहना है कि पुरुष नसबंदी से ना ही शारीरिक कमजोरी होती है और ना ही पुरुषत्व का क्षय होता है। दंपती जब भी चाहे इसे अपना सकते हैं।
पुरूष नसबंदी कराने तत्काल तीन हजार रूपये प्रोत्साहन राशि:
सिविल सर्जन डॉ. सागर दुलाल सिन्हा ने बताया कि परिवार नियोजन में महिलाओं के साथ पुरुष की भी अहम भूमिका होती है। दो बच्चों के बाद यदि किसी कारण से महिला नसबंदी नहीं कर सकती है, तो पुरुष को नसबंदी करा लेनी चाहिए। इसके लिए उन्हें प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। साथ ही, पुरुष नसबंदी महिलाओं के बंध्याकरण से 20 गुना अधिक सरल और सुलभ है। उन्होंने बताया कि पुरुष नसबंदी कराने पर व्यक्ति को तीन हजार और प्रेरक को चार सौ रुपये प्रोत्साहन धनराशि तत्काल मिलता है। महिला नसबंदी कराने पर दो हजार और प्रेरक को तीन सौ रुपये मिलते हैं।
छोटा परिवार, सुखी परिवार के लिए चुना नसबंदी की राह:
सारण जिले के मांझी प्रखंड निवासी रामेश्वर साह (बदला हुआ नाम), जो एक युवा पिता हैं, ने कहा, “मैंने हमेशा सुना था कि नसबंदी से मर्दानगी कम होती है, लेकिन जब मैंने विशेषज्ञों से बात की, तो मैंने समझा कि यह सिर्फ एक मिथक है। मुझे अपनी पत्नी और बच्चों की भलाई के लिए यह कदम उठाना जरूरी लगा।” एक बेटा और बेटी है। इसलिए उन्होंने नसबंदी की राह चुनी। जिससे वो भविष्य में अपने परिवार का पालन पोषण अच्छे से कर सकें। उन्होंने कहा कि आज महंगाई के दौर में बड़े परिवार का पालन पोषण करना काफी कठिन हो गया। लोग छोटा परिवार और सुखी परिवार रखना तो चाहते हैं, लेकिन मिथकों के चक्कर में आकर नसबंदी नहीं कराते। जिसे तोड़ने के लिए स्वास्थ्य विभाग को थोड़ा और प्रयास करना होगा। जिससे लोगों में जागरूकता बढ़े।
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