छपरा। जरा गौर से देखिए इस तस्वीर को। खेतों के बीचों-बीच धधकती आग और निकलती धुंए को देखिए। बीच खेत से निकलती धुंआ किसी ईंट भट्टा और चिमनी की नहीं है। बल्कि पूर्ण शराब बंदी वाले राज्य में बेखौफ शराब तस्करों द्वारा बनायी जा रही देशी शराब की भट्टी की धुंआ है।
यह तस्वीर छपरा शहर के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के मेथवलिया से सटे फोरलेन के समीप चंवर की है। जहां सरेशाम शराब तस्करों के द्वारा देशी शराब बनाया जा रहा है। तस्वीरों में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि शराब तस्कर किस तरह से दिन के उजाले में पुलिस के बिना डर और भय के शराब बनाने का काम कर रहे हैं।
अब सवाल उठना लाजमी है कि क्या इस इलाके में पुलिस की नजर नहीं है, क्या इस इलाके पुलिस की गश्ती गाड़ी नहीं जाती हैं। यहां से कुछ हीं दूरी पर मुफस्सिल थाना की पुलिस मेथवलिया चौक पर तैनात रहती है।
पुलिस सड़क पर गश्ती भी करती है तो क्या पुलिस की नजर इन बेखौफ शराब तस्करों पर नहीं जाती है। सरकार और पुलिस प्रशासन के आला अधिकारी शराब बंदी के चाहे जितने दावे कर लें लेकिन उनके दावे की वास्तविकता यह है कि अब भी ना केवल ग्रामीण इलाकों बल्कि शहरी क्षेत्र के इलाकों में ना केवल शराब बनाई जा रही है बल्कि उसे बेचा भी जा रहा है।
जब जिला मुख्यालय स्थित इलाकों का यह हाल है तो फिर सूदूर ग्रामीण इलाकों का क्या हाल होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। चंद पुलिसकर्मियों के सेटिंग के वजह कच्ची शराब का काला कारोबार मोटी कमाई का जरिया बन चुका है।
वहीं केमिकल यूरिया व अन्य हानिकारक तत्वों से उत्पादित होने वाली कच्ची शराब से आए दिन कोई न कोई घटनाएं सुनने को मिल रही है। सारण में जहरीली शराब से अब तक सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है। इसके बावजूद शहर क्षेत्र में कच्ची शराब का काला कारोबार चल रहा है।
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