Transgender Divya Ojha: लकीर तोड़ी, तस्वीर बदली और बिहार पुलिस में भर्ती हो गयी ट्रांसजेंडर दिव्या
‘छक्का’ से ‘सैल्यूट मैडम’ तक: दिव्या ओझा ने बदल दी समाज की सोच

Success Story: यह कहानी है एक ऐसी शख्सियत की, जिसने समाज की कड़वी बातों को चुपचाप नहीं सहेजा, बल्कि उन्हें अपनी ताकत बना लिया। जिन शब्दों से कभी उन्हें तोड़ा गया, आज वही शब्द गर्व और सम्मान में बदल गए हैं। कभी तानों का सामना करने वाली ट्रांसजेंडर दिव्या ओझा (Transgender Divya Ojha) अब बिहार पुलिस में चयनित होकर पूरे प्रदेश और ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक मिसाल बन गई हैं।
जहां से शुरू हुआ सफर
गोपालगंज की रहने वाली दिव्या का जीवन शुरुआत से ही संघर्षों से भरा रहा। बचपन से ही जब उन्होंने खुद को बाकी लड़कों से अलग महसूस किया, तब से समाज की अस्वीकृति और उपेक्षा उनके हिस्से में आई। स्कूल में तानों से लेकर, सड़कों पर चलने तक – हर कदम पर ‘छक्का’ कहकर चिढ़ाया जाता। लेकिन दिव्या ने इन अपमानों को अपने आत्मसम्मान की राह में रुकावट नहीं बनने दिया।
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सपने की ओर पहला कदम
दिव्या ने यह ठान लिया था कि वह खुद को साबित करके रहेंगी। उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी, और पिछले ढाई साल से पटना में रहकर बिहार पुलिस में भर्ती होने की तैयारी की। एक कोचिंग संस्थान में दाखिला लिया, जहां कई बार तिरस्कार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। शिक्षकों से मार्गदर्शन लिया और निरंतर पढ़ाई करती रहीं।
इतिहास में दर्ज हुआ नाम
बिहार पुलिस सिपाही भर्ती परीक्षा 2024 में दिव्या ने सफलता हासिल की। इस परीक्षा में कुल आठ ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों को सफलता मिली, जो राज्य में पहली बार हुआ। लेकिन दिव्या का नाम इसलिए अलग है, क्योंकि उन्होंने न केवल परीक्षा पास की, बल्कि समाज की सोच को भी चुनौती दी।
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अब कहा जाता है – ‘सैल्यूट मैडम’
जिन गलियों में कभी उन्हें तिरस्कार मिला, उन्हीं गलियों में अब उन्हें ‘सैल्यूट मैडम’ कहकर सम्मानित किया जा रहा है। यह बदलाव सिर्फ दिव्या की सफलता का नहीं, बल्कि पूरे समाज की सोच में आए सकारात्मक परिवर्तन का संकेत है। दिव्या अब एक सशक्त पहचान हैं – प्रेरणा, संघर्ष और बदलाव की।
दिव्या की जुबानी
दिव्या कहती हैं, “मैंने कभी किसी से नफरत नहीं की, बस खुद को साबित करने की ठान ली थी। मुझे यकीन था कि एक दिन लोग मुझे मेरे नाम और काम से पहचानेंगे, न कि मेरे जेंडर से।”
प्रेरणा बनती एक कहानी
दिव्या ओझा की यह कहानी उस हर शख्स के लिए संदेश है जो समाज की रूढ़ियों में घुट रहा है – कि अगर इरादा मजबूत हो, तो कोई भी दीवार बड़ी नहीं होती। आज दिव्या सिर्फ बिहार पुलिस की जवान नहीं, बल्कि उम्मीदों की एक मशाल बन चुकी हैं।