Atal Ghat: सारण में 10.5 करोड़ रुपये की लागत से काशी के तर्ज पर बन रहा है अटल घाट
आस्था, पर्यटन और रोजगार का बनेगा केंद्र


छपरा।नमामि गंगे परियोजना के तहत मांझी प्रखंड के रामघाट पर बन रहे अटल घाट को लेकर जहां एक ओर लोगों में गहरी जिज्ञासा और उम्मीदें बनी हुई हैं, वहीं दूसरी ओर निर्माण कार्य की धीमी गति से निराशा भी बढ़ रही है। लगभग 10.5 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे इस घाट को लेकर दावा किया गया था कि यह बनारस के घाटों की तरह विकसित किया जाएगा, लेकिन निर्धारित समय सीमा बीत जाने के बाद भी कार्य अधूरा पड़ा है।
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गौरतलब है कि सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने स्पष्ट तौर पर संवेदक को निर्देश दिया था कि घाट का निर्माण 15 मई 2025 तक हर हाल में पूरा कर लिया जाए। हालांकि, जून के अंत तक भी घाट निर्माण कार्य अधूरा है और करीब तीन महीने का कार्य शेष बताया जा रहा है।
बनारस की तर्ज पर भव्यता
इस घाट को खास बनाने के लिए आगरा से पत्थर मंगवाए गए हैं, जिन्हें राजस्थान से आए मिस्त्री तराश रहे हैं। डिजाइन और संरचना को लेकर दावा किया जा रहा है कि यह घाट भविष्य में धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बनेगा, जहां न सिर्फ बिहार बल्कि उत्तर प्रदेश से भी श्रद्धालु पूजा और स्नान के लिए आएंगे। घाट पर महिलाओं के लिए चेंजिंग रूम, शौचालय, पीने के पानी की व्यवस्था, विश्राम स्थल जैसी सुविधाओं की भी योजना है।
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स्थानीय लोगों का कहना है कि जब निर्माण कार्य शुरू हुआ था, तब सभी को लगा कि यह घाट एक मॉडल घाट बनेगा। लेकिन अब निर्माण की धीमी गति और अधूरे कार्य ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। “यह घाट अगर समय पर बन जाए और सही तरीके से बने तो मांझी क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन को नया जीवन मिलेगा।”
तकनीकी खामियों पर सवाल
स्थानीय श्रद्धालुओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि नदी की गहराई तक ढलाई और पक्कीकरण नहीं किया गया है। इससे घाट साल के केवल तीन महीने ही उपयोगी रहेगा, बाकी समय वह सूखा या गंदगी से भरा रहेगा। डोरीगंज के बंगाली बाबा घाट का उदाहरण देते हुए लोगों ने आशंका जताई है कि अगर बाढ़ के मौसम में नदी की तेज धार घाट की सीढ़ियों पर मिट्टी और खरपतवार जमा कर देगी, तो यह भी अनुपयोगी और बदहाल हो जाएगा। साल भर श्रद्धालुओं की आवाजाही घट जाएगी और घाट वीरान पड़ा रहेगा।
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प्रशासन से मांग: समयसीमा तय हो, गुणवत्ता पर समझौता नहीं
जनता की मांग है कि प्रशासन निर्माण कार्य की गति और गुणवत्ता पर सख्ती से नजर रखे। निर्माण एजेंसी को जवाबदेह ठहराते हुए समयसीमा में कार्य पूरा कराया जाए, ताकि अटल घाट श्रद्धालुओं के लिए आस्था और सुविधा का संगम बन सके — न कि सरकारी योजनाओं की एक और अधूरी कहानी।
छपरा जैसे तीर्थ-समृद्ध जिले में इस तरह का एक मॉडर्न घाट न सिर्फ सांस्कृतिक पहचान को मजबूती देगा, बल्कि धार्मिक पर्यटन को भी नई दिशा देगा। लेकिन, इसके लिए आवश्यक है कि योजनाओं को सिर्फ कागजों से निकालकर ज़मीन पर उतारा जाए — समयबद्ध, पारदर्शी और टिकाऊ ढंग से। |
