छपरा। कहते हैं की मां अगर चाहे तो अपने बेटे को अपने परवरिश के बदौलत महान बन सकती है। जी हां आज हम बात कर रहे हैं। ग्रामीण इलाका के छोटे से गांव के पिछड़े परिवार के एक ऐसे महिला के बारे में जिसने अपने एक नहीं दो बेटे को भारत मां की सेवा के लिए आर्मी में भेज दिया। एक आर्मी में क्लर्क है तो दूसरा लेफ्टिनेंट बन देश की सेवा कर रहा है। अमनौर प्रखंड के मदारपुर पंचायत के लहेर छपरा गांव के सुरेश प्रसाद यादव तथा श्रीमति फुलझड़ी देवी के संघर्षों की कहानी की।
सुरेश प्रसाद यादव के पिता स्व. राम सागर राय गांव के सरपंच थे एवम उनका सपना था की एक दिन उनका पोता बड़ा होकर अपने गांव जवार का नाम रौशन करेगा, परंतु घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी। जिस कारण कुणाल के पिता प्राइवेट स्टील फैक्ट्री में काम करना शुरू किया परंतु वेतन बहुत ही कम था, जिस कारण अपने दोनों बेटों को पढ़ने के लिए माता फुलझड़ी देवी ने सिलाई मशीन चलाने का काम सीख एवं अपने बच्चों के पढ़ाई का जिम्मा अपने ऊपर उठाया दोनों बच्चों के गांव के ही सरकारी स्कूलों में पढ़ाया।
मेहनत ने रंग लाया, बड़े पुत्र मुकेश कुमार राय का चयन इंडियन आर्मी में क्लर्क के रूप में हुई जिसके बाद घर की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। छोटा पुत्र अभिषेक कुणाल उर्फ कुणाल यादव पटना में अपने ममेरे भाइयों के साथ रहकर पढ़ाई करने लगे। कुणाल बड़े भाई के परामर्श से एनडीए में असफल होने के बाद आर्मी जॉइन करने का निर्णय लिया और अपने पहले प्रयास में ही सफल हुए ।
ताना बन गई सफलता का मंत्र
लेफ्टिनेंट कुणाल के पिता सुरेश प्रसाद यादव ने बताया कि गांव के उनके भाई आर्मी में थे। जिसको देखकर उन्होंने भी अपने एक बेटे को आर्मी में भेजने की बात ग्रामीणों से कहीं परंतु गांव वालों ने मजाक उड़ाते हुए ताना दिया। जो ताना उनके जीवन में सफलता का मूलमंत्र बन गया। पति-पत्नी दोनों ने अपने एक नहीं बल्कि दोनों बच्चे को देश की सेवा में भेजने के लिए संकल्प लिया और दिन रात मेहनत कर अपनी इच्छाओं को अधूरा रख संकल्प को पूरा भी किया।
कुणाल यादव को कई बार असफल होने के बाद मिली सफलता
लेफ्टिनेंट अभिषेक कुणाल ने बताया कि वे बचपन में काफी नटखट और जिद्दी थे परंतु माता-पिता के अनुशासन प्यार और त्याग के कारण आज यह मुकाम हासिल किया। कुणाल दो बार नेशनल डिफेंस एकेडमी का परीक्षा दिया परंतु दोनों बार सफल नहीं हुए।इसके बाद इनका चयन आर्मी मेडिकल कोर में एसकेटी ट्रेड में 2012 में हो गया। उन्होंने अपने लक्ष्य का पीछा करना जारी रखा एवं सर्विस एंट्री के रूप में एसीसी का तीन बार लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण हुए परंतु एसएसबी इंटरव्यू पास नहीं हो पाए क्योंकि इनका निश्चय अडिग था तो उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और एएमसी की एक और सर्विस एंट्री एएमसी नॉन टेक्निकल कमीशन की कोशिश की जिसमें इनको प्रथम दो प्रयासों में असफलता मिली थी और अंततः आखिरी प्रयास में सफल हुए एसएसबी जालंधर से रिकमेंड हुए।
इनका सपना साकार हुआ और कई वर्षों की मेहनत रंग लाई। 15 अक्टूबर 2024 को एमसी लखनऊ में अपने माता-पिता और परिजनों के सामने लेपिटेंट बने लेफ्टिनेंट कुणाल अपने जैसे आर्थिक रूप से कमजोर छात्र सब के लिए एक मिशाल बने हैं । वे अपना सफलता का श्रेय अपने माता-पिता व बड़ो का आशीर्वाद, अपने बड़े भाई का कुशल मार्गदर्शन, अपनी पत्नी का सहयोग, अपने सीनियर्स तथा साथियों का सहयोग एवम कोचिंग संस्थान AMAS के डायरेक्टर रिटायर्ड कर्नल मोहिन्दर पाल सिंह एवम उनके स्टाफ के द्वारा दिया गया महत्वपूर्ण ट्रेनिंग को देते हैं ।
Publisher & Editor-in-Chief