प्रेरक स्टोरी: आपके शहर के मंदिरों, गुरुद्वारा या किसी भी उत्सव में इस्तेमाल हुए फूलों का आखिरकार होता क्या है? हालांकि, कई शहरों में इसे रीसायकल करने के लिए विशेष प्लांट लगा है। लेकिन ज़्यादातर शहरों में इसे नदी या नाले में ही बहा दिया जाता है। इस बायोडिग्रेडेबल वेस्ट का इस्तेमाल करके नैनीताल की कुछ महिलाओं ने अपना रोजगार का जरिया खोज लिया है।
नैनीताल, उत्तराखंड में ‘चेली आर्ट्स’ संस्था पहाड़ी उत्पादों और कुमाऊंनी संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए काम करती है। हाल ही में यह संस्था इन फूलों और पत्तियों की मदद से कपड़ों पर डिजाइन तैयार कर रही है। इसमें खास बात यह है कि यह सबकुछ वेस्ट चीजों से बनाया जा रहा है। यह कमाल का आईडिया है चेली आर्ट्स की संस्थापक डॉ किरण तिवारी का।
दरअसल यह इको प्रिंट है, जिसमें पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए फैशनेबल चीजें बनाई जाती है। इससे डिजाइन किए गए कपड़ों से निकलने वाला रंग पानी में चला भी जाए, तो पानी को कोई नुकसान नहीं होता है। इसी कांसेप्ट के साथ चेली आर्ट्स ने इस डिजाइन पर काम कर रही है।
डॉ किरण तिवारी ने बताया कि यह एक तरह का बॉटनिकल आर्ट है। इसमें सूखे फूलों की पंखुड़ियों, बेकार पड़े पत्ते, प्याज के छिलके जैसी चीजों से कपड़ों पर प्रिंट किया जाता है। इसके लिए महिलाएं नजदीकी नैना देवी मंदिर और गुरुद्वारा से सूखे हुए फूलों की मालाओं से फूल इकट्ठा करती हैं। और फिर उनकी पंखुड़ियों को अलग-अलग करके इस्तेमाल करती हैं।
वहीं प्रिंट के लिए पहले कपड़े को साफ करके धोया जाता है और उसके बाद फूलों की पंखुड़ियों की डाई बनाई जाती है। इसे कपड़े पर लगाया जाता है और आकर्षक डिजाइन दिए जाते हैं। फूलों से बने इस डिजाइन को ‘फुलारी आर्ट्स’ के नाम से जाना जाता है। फिलहाल तो वे इन फूलों से स्टोल, साड़ी और रुमाल आदि बना रहे हैं।
लेकिन कपड़ों के अलावा भी यह महिलाएं प्राकृतिक होली के रंग कुमकुम, पीठिया और धूप जैसे कई तरह के आर्गेनिक प्रोडक्ट्स बना रही हैं।
किरण का यह कदम पर्यावरण के लिए तो ज़रूरी है ही साथ ही वह इस काम से पहाड़ों की 10 महिलाओं को रोज़गार भी दे रही हैं।अगर आप डॉ. किरण से इस काम के बारे में ज़्यादा जानकारी चाहते हैं या चेली आर्ट्स के प्रोडक्ट्स खरीदना चाहते हैं, तो उनसे यहां संपर्क कर सकते हैं।
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