
वाराणसी। कभी रहस्य और तपस्या की छाया में रहने वाली अघोर परंपरा, अब सामाजिक चेतना की मशाल थामे आगे बढ़ रही है। 1 मई की रात वाराणसी के रविन्द्रपुरी स्थित विश्वविख्यात ‘बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड’ पर एक ऐसा दृश्य देखने को मिला, जिसने परंपरा और परिवर्तन के बीच एक अद्भुत पुल बना दिया।
पवित्र परिणय-सूत्र में बंधने की नई मिसाल पेश की
अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी के ‘अवतरण दिवस’ के पावन अवसर पर जैसे ही ‘हर हर महादेव’ के उद्घोष से वातावरण गूंजा, उसी क्षण से एक अनूठी सामाजिक क्रांति की शुरुआत हो चुकी थी। मंच सजा, आशीर्वाद की वर्षा हुई और शुरू हुआ ‘सामूहिक विवाह समारोह’—जहाँ 33 जोड़ों ने दहेज और दिखावे के बोझ से मुक्त होकर पवित्र परिणय-सूत्र में बंधने की नई मिसाल पेश की।




कार्यक्रम की शुरुआत महाराजश्री के केक काटने से हुई, जो आमतौर पर साधुओं के बीच असामान्य माना जाता है। लेकिन यह दृश्य भक्तों के आग्रह पर हुआ—और प्रसाद के रूप में बंटे इस केक ने जैसे एक परंपरा को आधुनिकता से जोड़ दिया।
इसके बाद शुरू हुआ वो नज़ारा, जो देखने वालों की आँखें नम और दिल गर्व से भर देने वाला था। हर दुल्हन के चेहरे पर मुस्कान थी, हर दूल्हा आत्मसम्मान से भरपूर था। संस्था ने न केवल विवाह की संपूर्ण व्यवस्था की, बल्कि घर से आने-जाने तक की सुविधा, वर-वधू को गृहस्थ जीवन के लिए आवश्यक सामान, और आर्थिक सहायता भी दी।
हल्दी की रस्मों से लेकर लोकगीतों की मिठास तक, आयोजन ने पारंपरिकता का ऐसा रंग भरा कि अघोरपीठ का परिसर मानो एक घराती बन गया। रात आठ बजे से शुरू हुई शानदार सजावट, स्वादिष्ट भोजन और विशाल LED स्क्रीन पर चल रहे कार्यक्रम प्रसारण ने माहौल को भव्य बना दिया।
इस आयोजन की सबसे ख़ास बात यह रही कि इसकी खबर देश भर में फैली संस्था की शाखाओं के ज़रिए उन ज़रूरतमंद इलाकों तक पहुंची, जो अक्सर समाज की मुख्यधारा से दूर रह जाते हैं। इसने यह साबित कर दिया कि अघोरी सिर्फ साधक ही नहीं, समाज के सेवक भी हैं।
प्रशासन की चुस्त निगरानी, श्रद्धालुओं की सेवा भावना, और आयोजन की भव्यता ने इसे महज विवाह नहीं, बल्कि सामाजिक पुनर्जागरण का उत्सव बना दिया।
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